ललितपुर

विश्व गौरैया दिवस विशेष ● विलुप्त हो रही गौरैया के अस्तित्व को बचाने का करें प्रयास-

विश्व गौरैया दिवस विशेष –

प्रस्तुति- शिक्षक पुष्पेंद्र कुमार जैन 
                  ललितपुर 

● विलुप्त हो रही गौरैया के अस्तित्व को बचाने का करें प्रयास-

● घर आंगन से फुर्र हुई गौरैया का करें संरक्षण – 

एक समय था जब पेड़ों के ऊपर गौरैया का जमावड़ा होता था।गर्मियों के दिनों में उनकी चीं-चीं की आवाज कानों में चुभने सी लग जाती थी ।फिर दौड़कर बाहर जाकर उन्हें डरा कर चुप कराना बहुत ही अच्छा लगता था।जब  मां घर के आंगन में चावल फैलाये तो गौरैया का उड़कर आना और रसोई घर के रोशनदान पर फुदक-फुदक कर बैठना,खेत में खडी चावल   की फसल पर अपनी नजरें बनाए रखना ऐसे अनेक काम गौरैया करती थी,जिससे हम परेशान हो जाया करते थे।लेकिन अब यह माहौल ही कहाँ रह गया है।अब तो बडी ही मुश्किल से इस प्रजाति की चिड़िया देखने को मिलती है। शायद गौरैया को यह अहसास हो गया था कि हम इंसान गौरैया से परेशान हो जाया करते होंगे। इसलिए नन्हीं गौरैया ने भी अपना ठौर-ठिकाना बदल लिया है। गौरैया की घटती संख्या को अगर हमने गंभीरता से नहीं लिया तो वह दिन दूर नहीं जब धरती से उसका नामोनिशान मिट जाएगा।गौरैया अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही है।कभी उसकी चहचहाहट में वह मधुर आवाज होती थी जिसे सुनकर मन प्रसन्न हो जाता था।लेकिन वह आवाज अब बहुत ही कम सुनाई देती है।हमारे अपने बीच में फुदकने वाली प्यारी सी चिड़िया जिसको अंग्रेजी में स्पैरो और हिंदी में गौरैया के नाम से पहचाना जाता है।अब अचानक ही प्रकृति से विलुप्त होती जा रही है।क्या हमने कभी यह सोचा कि प्रकृति की इतनी प्यारी कल्पना के रूप में दी गई नन्हीं पक्षी का हमसे दूर चले जाने के पीछे क्या कारण है।जहां तक मैं समझता हूं खेतों में रासायनिक खादों के उपयोग में कीड़े-मकोड़ों की संख्या कम कर गौरैया के भोजन पर ग्रहण लगा दिया है।यही कारण है कि गौरैया हमसे रूठने लगी है। कुल लंबाई में 14 से 16 सेंटीमीटर की यह नन्हीं सी चिड़िया हमारे घरों में बच्चों से लेकर उम्रदराज लोगों को भी अपनी फुदकन से प्रसन्नता प्रदान करती थी। वजन में 25 से 32 ग्राम की यह चिड़िया हम सभी के घरों की एक सदस्य के रूप में रहती हुई आयी है। वर्तमान समय में यह एक संकटग्रस्त पक्षी के रूप में देखी जा रही है। भारत सहित यूरोपीय देशों में अब यह कम दिखाई देती है।विदेशों में इनकी संख्या तेजी से गिर रही है।आवासीय घरों में घौंसला बनाकर रहने वाली गौरैया चिड़िया की कम हो रही संख्या ने पर्यावरणविदों के लिए नई चिंता पैदा कर दी है। बाग- बगीचों में सैकड़ों की संख्या में पेड़ों और शाखाओं पर मडराने वाली गौरैया अचानक विलुप्ति की कगार पर क्यों है। यह वास्तव में हमारे पर्यावरण के लिए खतरनाक संकेत हो सकता है।खेत- खलिहानों सहित घर- आंगन में फुदकने वाली नन्हीं गौरैया को देखकर हम किसी का मन प्रफुल्लित हो उठता है,किंतु आज वही नन्हीं गौरैया हमारी नजरों से ओझल होती जा रही है। छोटे-छोटे कीट पतंगों को खाकर वह अपना जीवन चलाने वाली नन्हीं
गौरैया हमें उन्हीं कीट पतंगों के आक्रमण से होने वाली बीमारियों से भी संरक्षण प्रदान करती है।भोली भाली पक्षी के रूप में हम उस छोटी सी चिड़िया को चावल के दाने चुगाते हुए अपने आसपास इकट्ठा कर सकते हैं।कुछ ही दिन से नियमित दिनचर्या से यह हमारे घर आंगन में बेखौफ उतरने वाली मडराने लगती है। उसी गौरैया चिड़िया के अस्तित्व का प्रश्न जब पर्यावरणविदों के बीच उठाया गया तो पूरा विश्व चिंतित हो उठा। 20 मार्च को “विश्व गौरैया दिवस” के रूप में मनाने की घोषणा भी की गई, ताकि गौरैया को संरक्षण दिया जा सके और पर्यावरण की साक्षी उस छोटी सी नन्हीं सी चिड़िया को प्रेम और स्नेह मिल सके। होम स्पैरो के रूप में पहचान बना चुकी गौरैया किसी पारिवारिक सदस्य से कम स्थान नहीं रखती है। विश्व में जितने भी पक्षी हैं उनमें गौरैया ही परिवारों के अंदर अपना घौंसला बनाकर सुख-दुख की साझेदार के रूप में सामने आती है।बहुत सी गौरैया चिड़िया सामान्य रूप से कृषि क्षेत्रों में अपना डेरा डाले रहती है।साथ ही बहुत सी ऐसी प्रजातियां प्राकृतिक रूप से अपना जीवन यापन करती हैं।पक्षी विशेषज्ञों का मानना है कि हाउस स्पैरो उस स्थान पर रहना पसंद करती है जहां मानव का निवास होता है।वैज्ञानिक और पक्षी विशेषज्ञों का ऐसा भी मानना है कि अनाज के दानों को खाने वाली गौरैया विशेष रूप से घरों में अपना ठिकाना बनाती है।जबकि गोल्डन स्पैरो खेतों में रहकर कीट पतंगों को खाकर अपना जीवन यापन करती है।भीषण गर्मी के दिनों में गौरैया चिड़िया का जीवन बड़ा कठिन हो जाता है उसे न तो पानी मिल पाता है और न ही भोजन।यही कारण है कि इन दिनों गौरैया हमें दिखाई नहीं पड़ती है। उनका पूरा कुनबा ठंडे प्रदेशों की ओर चला जाता है। इस बात की चिंता हमें करनी होगी कि हम इन पक्षियों को अपने बीच कैसे रोकें। इसके लिए हमें उनके घौंसले के आसपास पानी की पर्याप्त व्यवस्था करने के साथ-साथ धान,गेहूं,बाजरा भरपूर दानों के साथ घौंसलों के आसपास ही उपलब्ध कराना होगा।आज के बदले पर्यावरणीय माहौल में गौरैया की झलक पाने हम और हमारी पीढ़ी लंबा इंतजार करने से भी पीछे नहीं रहती है। आज से लगभग दो दशक पूर्व हमें गौरैया चिड़ियों के साथ अन्य पक्षी भी हाईटेंशन तारों पर अटूट कतार के रूप में बैठे दिख जाया करते थे,किंतु एक तस्वीर लेने के लिए आज के पक्षी प्रेमियों को जंगल-जंगल घूमना पड़ रहा है तब भी दिल को लुभाने वाली तस्वीर नहीं मिल पा रही है। घरों में घौंसले में रहने वाली गौरैया भी अब हमारे घरों का पता भूल चुकी है।खुली छतों पर कुछ लकड़ियां इस प्रकार से सजाना भी सुकून भरे परिणाम दे सकते हैं।जिसमें गौरैया अपना घौंसला बना सकें। जबसे शहरों में मोबाइल टावरों की संख्या ज्यादा हो गई है  तभी से गौरैया का जीवन संकट में पड़ गया है। मोबाइल टावरों से निकलने वाली तरंगों का दुष्परिणाम ही पक्षियों की कम होती संख्या के लिए जवाबदार है।वन विभाग अधिनियम के अंतर्गत बनाए गए ”वन्य प्राणी सप्ताह” में कानून की अनदेखी भी शिकारियों पर सख्ती नहीं कर पा रही है। पर्यावरण को सहज बनाते हुए और मानवीय जीवन के साथ गौरैया जैसी नन्हीं घरेलू चिड़िया का अस्तित्व बनाए रखने के लिए जरूरी है कि हम उनके घौंसलों को संरक्षण प्रदान करें।साथ ही घौंसले बनाकर उसमें सुविधापूर्ण जीवन यापन के लिए विलुप्त हो रही गौरैया को दाना -पानी की व्यवस्था उपलब्ध कराएं। एक समय था जब सूरज की पहली किरण धरती में पड़ने से पूर्व भोर के समय गौरैया की चहचहाहट कानों में मिश्री घोल जाती थी। सूरज ढलने के साथ बाग-बगीचों में फिर वही चीं-चीं की आवाज सुनने हम बेताब हो उठते और अपने कदमों को बगीचों की ओर बढ़ा देते। अब यह सपना ही रह गया है।न तो बाग बगीचों का अस्तित्व बच पा रहा है और न ही उन बागों की शहजादी कही जाने वाली गौरैया। अब तो बाग बगीचों का स्वरूप भी पेड़-पौधों के प्रादर्श के रूप में प्रकृति से दूर भागता दिखाई दे रहा है।जहां रंगीन फब्बारे तो हैं किंतु हरे-भरे पेड़ नहीं,जहां बच्चों के उछल-कूद के लिए झूले और मिक्की माउस तो हैं,किंतु ऐसे पेड़ नहीं है,जहां गौरैया घौंसला बनाया जा सके।मनुष्य के खाने पीने की सारी सुविधाएं तो एक से बढ़कर एक हैं,किंतु फूलों का रस और मकरंद चूसने के लिए गौरैया के लिए न तो फूल हैं और न ही मकरंद है।इन सारी विपरीत परिस्थितियों में गौरैया का मित्रता की संकल्पना महज बेमानी से अधिक कुछ नहीं कही जा सकती है।वर्तमान समय में मोबाइल के रिंगटोन में ही हम कलरव का आनंद ले पा रहे हैं और उसी मोबाइल की गैलरी में वॉलपेपर के रूप में गौरैया से मिल पा रहे हैं। हमें आज आवश्यकता है गौरैया के संरक्षण की। गौरैया संरक्षण के लिए हमें गौरैया के लिए अपने घरों की बालकनी,छत,स्कूलों में जगह देनी होगी। तब हम गौरैया का संरक्षण कर सकेंगे।हम गर्मी के दिनों में अपने घर की छत पर मिट्टी के बर्तन में पानी भरकर रखें।गौरैया को खाने के लिए कुछ अनाज छतों और बालकनी, स्कूलों,पार्कों में रखें,कीटनाशक का प्रयोग न करें,अपने वाहन को प्रदूषण मुक्त रखें,हरियाली बढ़ाएं,छतों पर घोंसला बनाने के लिए कुछ जगह छोड़े,गौरैया घौंसलों को नष्ट न करें। जिससे यह नन्हीं सी गौरैया फिर से चीं-चीं की आवाज करती हुई घरों में उडती हुई दिखाई दे।
———-“वृक्ष लगाएं,वृक्ष बचाएं।
            सुंदर सुखद भविष्य बनाएं ।।
             गौरैया का घर बनाएं।
              गौरैया को बचाएं।।

पत्रकार रामजी तिवारी मड़ावरा
चीफ एडिटर टाइम्स नाउ बुन्देलखण्ड
Timesnowbundelkhand.com

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