शहीद दिवस / विशेष भगत सिंह और उनके साथियों के बलिदान से जन आन्दोलनों की धार तेज हुई :-

शहीद दिवस / विशेष
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भगत सिंह और उनके साथियों के बलिदान से जन आन्दोलनों की धार तेज हुई :-
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ललितपुर। शहीद-ए-आजम भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव के बलिदान दिवस पर आयोजित एक परिचर्चा को संबोधित करते हुए नेहरू महाविद्यालय के सेवानिवृत्त प्राचार्य प्रो. भगवत नारायण शर्मा ने कहा कि 23 मार्च को फाँसी के फंदे को चूमने वाले शहीदे आजम भगतसिंह की उम्र मात्र 23 वर्ष थी । फाँसी से 3 दिन पूर्व पंजाब के गवर्नर को लिखे अपने पत्र में उन्होंने लिखा कि शक्तिशाली शक्तिहीन श्रमिकों के आय के साधनों पर एकाधिकार करते हुए , उनके श्रमफल की चोरी करते रहेंगे । इसीलिए साम्राज्यवाद और पूँजीवाद कुछ दिनों के मेहमान हैं । हमारा संघर्ष हमारे जीवन के पश्चात दिनोंदिन शक्तिशाली होता जायेगा ।
उनका मानना था कि क्रान्ति मानव जाति का अनुल्लंघनीय अधिकार है । स्वतंत्रता सभी का जन्मसिद्ध अधिकार है । मानव एकता को तोड़ने वाली कुचालों को वे विकास का सबसे बडा दुश्मन मानते थे । इसीलिए वे कहते थे कि सामाजिक क्रान्ति लगातार चलती रहना चाहिए । क्रान्तिकारी ही मानवता का सच्चा पुजारी होता है । उन्होंने न्यायालय में स्पष्ट घोषणा की थी कि ज्यों ही कानून सामाजिक आवश्यकताओं को पूरा करना बंद कर देता है , त्यों ही जुल्म और अन्याय को बढ़ाने का हथियार बन जाता हैं ।
जलियांवाला बाग के सामूहिक हत्याकांड को देखकर युवा भगतसिंह ने अपनी लाहौर कालेज की पढ़ाई छोड़ दी और नौजवान क्रान्तिकारी पार्टी का गठन किया जिसके माध्यम से उन्होंने जनसेवा , त्याग और हर तरह की कुर्बानी देने वाले नवयुवकों को संगठित किया । उनका स्पष्ट कहना था कि अत्याचारी और जनविरोधी चाहे भारत का हो अथवा विदेशी हमें दोनों के खिलाफ संघर्ष करते हुए , पराजित करना है जिससे कि समता और न्याय आधारित मनुष्योचित् रामराज्य धरती पर फिर से स्थापित हो सके । अपनी नौजवान क्रान्तिकारी पार्टी के घोषणा पत्र में भगतसिंह ने स्पष्ट कहा था कि स्वतंत्रता का पौधा शहीदों के रक्त से फलता है । क्रान्ति कोई मायूसी से पैदा दर्शन नहीं है , यह कोई फूलों की सी जमीं नही है , यह नौजवानों का वह लौह संकल्प है , जो फांसी के तख्ते पर भी मुस्कराता है । फर्ज के बिगुल की आवाज सुनो नींद से जागो और उठो ।
सरदार भगतसिंह को जब 23 मार्च के दिन फाँसी दी जा रही थी तो जेलर ने उनसे पूछा कि तुम्हारी अन्तिम इच्छा क्या है ? मात्र साढ़े तेईस साल की कच्ची उम्र वाले अडिग निश्चयी भगतसिंह ने कहा कि बेबे की तरह ही यानि अपनी माँ के समान जो इस जेल की महिला सफाई कर्मचारी है , वही मेरी माँ है । अत: अंतिम समय उसकी गोदी में बैठकर उसके हाथ की बनी रोटी खाना चाहता हूँ । जेलर ने माँ को भगतसिंह की इच्छा से अवगत कराया और बड़े प्यार से उसके हाथ का बनाया भोजन ग्रहण किया ।
पत्रकार रामजी तिवारी मड़ावरा
चीफ एडिटर टाइम्स नाउ बुन्देलखण्ड
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