श्रद्धालुओं ने किया 25 हजार सामूहिक श्री दुर्गा चालीसा का पाठ 20 लाख पार्थिव शिवलिंग का किया निर्माण

श्री सिद्धपीठ चंडीमंदिर धाम पर चल रहे पार्थिव शिवलिंग निर्माण में श्रद्धालु भारी संख्या में पहुंच रहे मंदिर
ललितपुर। श्री सिद्धपीठ चंडी मंदिर धाम पर चल रहे सवा पंाच करोड़ पार्थिव शिवलिंग निर्माण कार्यक्रम में रविवार को श्रद्धालुओं, बच्चो से लेकर बड़े बुजुर्गो तक ने 25 हजार सामूहिक श्री दुर्गा चालीसा का पाठ किया। सामूहिक पाठ अनंतविभूषित श्री चंडीपीठाधीश्वाराचार्य महामण्डलेश्वर स्वामी चंद्रेश्वरगिरी महाराज के सानिध्य में संपन्न हुआ। जिसमें सैंकड़ो की संख्या में श्रद्धालुओं ने भाग लिया। रविवार को श्रद्धालुओं ने 20 लाख पार्थिव शिवलिंग का निर्माण किया।
वहीं अपरान्ह में पार्थिव शिवलिंग का श्री रूद्रमहाभिषेक वैदिक ब्राहम्मणों द्वारा कराया गया। श्री महारूद्राभिषेक प्रधान अभिषेक हरिशंकर साहू ने किया। वहीं शिवमहापुराण की कथा सुनाते हुए महाराज जी ने कहा कि जिसका मन वश में है, जो राग-द्वेष से रहित है, वही स्थायी प्रसन्नता को प्राप्त करता है। जो व्यक्ति अपने मन को वश में कर लेता है उसी को कर्मयोगी भी कहा जाता है। इस संसार में मनुष्य दो प्रकार के हैं – एक तो दैवीय प्रकृति वाले, दूसरे आसुरी प्रकृति वाले। इसी तरह से हमारे मन में भी दो तरह का चिंतन चलता है-सकारात्मक एवं नकारात्मक चिंतन। सकारात्मक सोच वाले खुश और नकारात्मक सोच वाले दुरूखी देखे जाते हैं। हमारी सोच ही हमें सुखी और दुरूखी बनाती है। हम जैसा सोचते हैं, वैसे ही हो जाते हैं। हमारी सोच या चिंतन जैसा होता है, वह हमारे चेहरे पर, हमारे व्यवहार में, हमारे कार्याे में दिखने लगता है। जब हमारे अंदर भय और शंकाएं प्रवेश कर जाती हैं तो वह हमारी आंखों व हमारे हावभाव से पता चलने लगता है और हमारे भीतर जब खुशियां प्रवेश करती हैं या हमारा चिंतन हास्य या खुशी का होता है तो हमारे सारे व्यक्तित्व से खुशी झलकती है। जब हम मुस्कुराहट के साथ लोगों से मिलते हैं तो सामने वाला भी हमसे खुशी के साथ मिलता है। जब हम दुरूखी होते हैं या गुस्से में होते हैं तो दूसरे लोग हमें पसंद नहीं करते और वे हमसे दूर जाने का प्रयास करते हैं। मुरझाये या दुरूखी लोगों को कोई पसंद नहीं करता। बहुत से लोगों की सोच या चिंतन, अपना दुरूख बताने की होती है। ऐसे लोग स्वयं तो दुरूखी रहते ही हैं, दूसरों को भी दुरूखी करते हैं। हमारा चिंतन यदि सकारात्मक है तो हममें दया, करुणा, उदारता, सेवा, परोपकार जैसे सदगुणों को देने वाली शक्ति का संचार होता है। यदि हमारा चिंतन नकारात्मक है तो हम राग-द्वेष के बंधन में बंधते चले जाते हैं। सकारात्मक चिंतन के कारण ही महाभारत में भगवान श्रीकृष्ण ने दुर्याेधन के सामने पांडवों को पांच गाँव देने का प्रस्ताव रखा था, पर नकारात्मक सोच वाले दुर्याेधन ने श्रीकृष्ण का सकारात्मक चिंतन वाला प्रस्ताव ठुकरा कर युद्ध करने का निश्चय किया था, जिसका परिणाम भारी मात्र में जन-धन की हानि के रूप में सामने आया। इसलिए हम कह सकते हैं कि दुख और सुख का एकमात्र कारण हमारा चिंतन है कि हम कैसा चिंतन करते हैं। जो दुखों में भी सुखों की तलाश करते हैं, वही सच्चे अर्थों में मानवता की सेवा कर पाते हैं और संसार को खुशियां बांटते हैं। अतः हमारा चिंतन सदैव सकारात्मक ही होना चाहिए। श्री शिवमहापुराण की आरती कथा के मुख्य यजमान डा. अनूप श्रीवास्तव, डा. रानी श्रीवास्तव, गिरीश खरे सहित अन्य परिजनों द्वारा किया गया। कार्यक्रम में प्रेस क्बल अध्यक्ष राजीव बबेले, विजय जैन कल्लू, रामकृपाल गुप्ता, अनूप मोदी, अमित संज्ञा, संजीव खरे, राहुल शुक्ला, संतोष साहू, लक्ष्मीनारायण साहू, गिरीश शर्मा, अश्विनी पुरोहित, बाबा हीरानंदगिरी, गणेश शर्मा, प्रकाश श्रीवास्तव, मनोज वैद्य, शंातनु पुरोहित, श़त्रुघन यादव, मनीष झां आदि उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन बृजमोहन संज्ञा ने किया।
पत्रकार रामजी तिवारी मड़ावरा
चीफ एडिटर टाइम्स नाउ बुन्देलखण्ड
Times now bundelkhand
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