
विश्वशांति के लिए भगवान महावीर की शिक्षाएँ: एक प्रासंगिक दृष्टिकोण
प्रस्तुति-डॉ० राजेश जैन शास्त्री ललितपुर
आज के युग में सम्पूर्ण विश्व हिंसा,आतंकवाद, युद्ध,असमानता और तनाव जैसी समस्याओं से ग्रसित है। कोई स्वाभिमान की पूर्ति के लिए ,तो कुछ अभिमान को पुष्ट करने के लिए राग ,द्वेष,
ईर्ष्या,मद जैसे मानसिक विकारों से ग्रसित हैं।विश्व पटल ऐसे समय में शांति,अहिंसा और सहअस्तित्व के मार्ग को अपनाना अत्यंत आवश्यक हो गया है। भगवान महावीर द्वारा प्रदत्त सिद्धांत और उनकी शिक्षाएँ न केवल आत्मिक व आध्यात्मिक शांति का मार्ग दिखाती हैं, बल्कि वैश्विक शांति और सद् भाव स्थापित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। भगवान महावीर ने अहिंसा,सत्य,अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह के जिन सिद्धांतों का प्रतिपादन किया वे आज भी विश्व में शांति और सद् भाव लाने के लिए अत्यंत प्रासंगिक हैं।
भगवान महावीर स्वामी का जन्म ईसा से लगभग 599 वर्ष पूर्व बिहार के कुण्डग्राम (वैशाली) में राजा सिद्धार्थ व माता त्रिशला के पुत्र के रूप में चैत्र शुक्ला त्रयोदशी को हुआ था। भगवान महावीर को वीर,अतिवीर,सन्मति,वर्धमान नाम से भी जाना जाता हैं। उन्होंने 30 वर्ष तक राजसी जीवन व्यतीत कर आध्यात्मिक मार्ग को अपनाते हुए सत्य,अहिंसा और तपस्या का मार्ग अपनाया। उन्होंने अपने तप और ध्यान के माध्यम से ज्ञान प्राप्त किया और जैन धर्म के 24 वें तीर्थंकर के रूप में विश्व को अहिंसा,सत्य और संयम का संदेश दिया। उनकी शिक्षाएँ न केवल धार्मिक और आध्यात्मिक उन्नति के लिए थीं, बल्कि समाज के नैतिक और व्यावहारिक सुधार के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
● भगवान महावीर की प्रमुख शिक्षाएँ और विश्वशांति के प्रति उनका योगदान
01- अहिंसा -भगवान महावीर का सबसे महत्वपूर्ण संदेश अहिंसा था। उन्होंने कहा:”अहिंसा परमो धर्मः”
इसका अर्थ है कि अहिंसा परम धर्म है। भगवान महावीर का उपदेश था कि संसार के प्रत्येक जीव में आत्मा होती है, इसलिए किसी भी जीव को मानसिक, शारीरिक या वाणी द्वारा हानि नहीं पहुँचानी चाहिए। आज के समय में युद्ध, आतंकवाद और हिंसा की समस्या को अहिंसा के मार्ग से ही समाप्त किया जा सकता है। यदि सभी राष्ट्र और समाज अहिंसा के सिद्धांत को अपनाएँ, तो वैश्विक स्तर पर स्थायी शांति स्थापित हो सकती है। “जिओ और जीने दो ” जैसे संदेश ही समाज के आपसी संबंधों को चिर स्थायी बना सकते हैं।
02- सत्य – भगवान महावीर ने सत्य को आत्मिक शांति और सामाजिक सद् भाव का आधार माना। सत्य का पालन करने से आपसी विश्वास बढ़ता है और समाज में पारदर्शिता आती है। वर्तमान समय में सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर झूठ और धोखाधड़ी से जो संघर्ष उत्पन्न होते हैं, वे सत्य के मार्ग को अपनाकर समाप्त किए जा सकते हैं। सत्य से वैश्विक स्तर पर भरोसा और शांति का वातावरण तैयार किया जा सकता है। जिससे अविश्वास ,धोखा जैसे अनैतिक मार्ग स्वयमेव समाप्त हो सकते हैं।
03- अचौर्य-भगवान महावीर ने कहा कि किसी भी वस्तु को बिना अनुमति या अनैतिक तरीके से प्राप्त करना चोरी के समान है। आर्थिक असमानता,भ्रष्टाचार और संसाधनों के अनुचित वितरण से विश्व में अशांति फैलती है।वर्तमान में प्रत्येक अखबार में टैक्स की चोरी व भ्रष्टाचार से जुड़े मामले प्रतिदिन प्रकाशित होते रहते हैं । समाज मे फैली ऐसी घटनाएं ही उसके विकास में बाधक है।यदि व्यक्ति और राष्ट्र अचौर्य के सिद्धांत को अपनाएँ,तो आर्थिक संतुलन स्थापित होगा और इससे सामाजिक समरसता और स्थिरता आएगी।
04- ब्रह्मचर्य -भगवान महावीर ने इंद्रियों और इच्छाओं पर संयम रखने का संदेश दिया। भौतिक सुखों की अति लालसा से मानसिक अशांति उत्पन्न होती है, जिससे समाज में असंतोष और हिंसा का वातावरण बनता है। वर्तमान काल मे अब्रह्म के कारण ही पांच पापों के कृत्यों में वृद्धि हुई है। उदाहरण स्वरूप अखबार के अधिकतर पृष्ठ ऐसे ही खबरों से भरे हुए हैं।जबकि ब्रह्मचर्य के पालन से व्यक्ति मानसिक रूप से संतुलित रहेगा और समाज में स्थायी शांति का वातावरण बनेगा।
05- अपरिग्रह- भगवान महावीर ने कहा कि आवश्यकता से अधिक वस्तुओं का संग्रह तथा भौतिक वस्तुओं के प्रति मोह,अशांति और संघर्ष का कारण बनता है। यदि व्यक्ति और समाज अपरिग्रह का पालन करें,तो आर्थिक और सामाजिक असमानता को कम किया जा सकता है। इससे समाज में संतोष और सौहार्द्रता का भाव बढ़ेगा,जो विश्वशांति की नींव बनेगा।
● भगवान महावीर की शिक्षाओं की आधुनिक प्रासंगिकता-
वर्तमान वैश्विक परिस्थितियों को देखते हुए भगवान महावीर की शिक्षाएँ अत्यंत प्रासंगिक हैं। आतंकवाद, युद्ध, सांप्रदायिकता और पर्यावरण संकट जैसी समस्याएँ विश्व शांति के मार्ग में बाधा बनी हुई हैं। यदि प्रत्येक व्यक्ति भगवान महावीर स्वामी के अहिंसा,सत्य,अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह के सिद्धांतों को अपनाएँ, तो वह जीवन में सुख प्राप्त कर सकता है।
भगवान महावीर की शिक्षाएँ किसी विशेष धर्म, जाति या समाज तक सीमित नहीं हैं, बल्कि वे संपूर्ण मानवता के कल्याण के लिए हैं। अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह के सिद्धांतों का पालन करके न केवल व्यक्तिगत जीवन में शांति और संतुलन स्थापित किया जा सकता है।बल्कि वैश्विक स्तर पर भी शांति और सद्भाव का मार्ग प्रशस्त हो सकता है।आधुनिक युग की समस्याओं का समाधान महावीर की शिक्षाओं में निहित है। यदि विश्व समुदाय उनके सिद्धांतों को अपनाए,तो एक शांतिपूर्ण, समृद्ध और समरस विश्व का निर्माण संभव है।
डॉ० राजेश जैन शास्त्री
पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर के पास
इलाइट,ललितपुर (उत्तरप्रदेश)
मो०- 9456449184
पत्रकार रामजी तिवारी मड़ावरा
चीफ एडिटर टाइम्स नाउ बुन्देलखण्ड
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