
*मड़ावरा में जैन समाज द्वारा शरद पूर्णिमा को भव्यति भव्य रूप में मनाया गया, इसी पावन दिवस को धरती के भगवान, जैन धर्म के सबसे बड़े दिगंबराचार्य श्री विद्यासागर जी महामुनिराज का 1946 को कर्नाटक के सदलगा जिला बेलगांव में श्रीमंती और श्री मलप्पा जी अष्टगे के यहां विद्याधर के रूप में जन्म हुआ जो बाद में आचार्य विद्यासागर जी बने और इस शरद पूर्णिमा के चांद से सोने पे सुहागा तब किया जब उन्हीं माता पिता के घर इसी शरद पूर्णिमा को एक और बालक का जन्म शांतिनाथ के रूप ने 1958 को हुआ और बाद में वह आचार्य श्री विद्यासागर जी के पद के मूल उत्तराधिकारी के रूप में वर्तमान के सबसे बड़े श्रमणकुल के आचार्य पद पर सुशोभित हुए, एक ही दिन अलग अलग बर्ष में दोनों आचार्य का जन्म एक ही मां की कोख से होना किसी चमत्कार के कम नहीं, आचार्य श्री जन्म के समय इनकी माता को तीन शुभ स्वप्न दिखाई दिए जिनके शुभ फल का ही परिणाम है कि दोनों ही बालक ने संयम पथ अंगीकार किया, वैसे तो इनके चार भाई थे, जो संयम पथ पर चल रहे है और माता पिता ने भी जैनेश्वरी दीक्षा ग्रहण की, दोनों बहनें भी संयम मार्ग पर चल रही है, यूं कहे कि जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ भगवान के बाद जैन संस्कृति में एक मात्र सड़लगा कर्नाटक के अष्टगे परिवार ही है जिनका पूरा घर संयम मार्ग पर चल रहा है, इस पावन शरद पूर्णिमा दिवस के अवसर पर सकल दिगंबर जैन समाज मड़ावरा ने विशाल जलूस के साथ शोभायात्रा निकाली एवं आचार्य श्री विद्यासागर वर्णी पाठशाला के बच्चों ने प्रभात फेरी निकाली..!
इस मौके पर सुबह से श्री महावीर विद्याविहार में जिनेंद्र भगवान का अभिषेक पूजन, और आचार्य श्री की पूजन का आयोजन हुआ इसके बाद पूरे नगर में शोभायात्रा निकाली गई जिसने पाठशाला की शिक्षिकाओं एवं बच्चों की मुख्य भूमिका रही एवं समाज के युवाओं का विशेष सहयोग रहा, नगर की परिक्रमा में युवा दोनों आचार्य श्री के उपकारों को नारे के रूप में लगा रहे थे एवं आचार्य श्री के द्वारा को भी प्रकल्प मानव कल्याण के लिए चलाएं गए थे उनका प्रचार प्रसार भी हाथ में ली गई तख्तियों के माध्यम से संदेश दिया जा रहा था यह पूरा कार्यक्रम बड़े हर्ष उल्लास के साथ मनाया गया..!!*
पत्रकार रामजी तिवारी मड़ावरा
चीफ एडिटर टाइम्स नाउ बुन्देलखण्ड
Times now bundelkhand
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