चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज व्यक्तित्व-कृतित्व पुस्तक का हुआ विमोचन आचार्य श्री वर्द्धमान सागर जी महाराज की प्रेरणा से हुआ है प्रकाशन डॉ सुनील जैन संचय ने किया है संपादन

ललितपुर। चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज के आचार्य पद प्रतिष्ठापना शताब्दी वर्ष के अवसर पर बीसवीं सदी के प्रथमाचार्य चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर व्यक्तित्व- कृत्तित्व पुस्तिका का भव्य विमोचन पंचम पट्टाचार्य वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री वर्द्धमान सागर जी महाराज ससंघ के सान्निध्य में विगत दिनों टोंक, राजस्थान में किया गया। पुस्तक का संपादन डॉ. सुनील संचय ललितपुर ने किया है। पुस्तक में मूर्धन्य मनीषी विद्वानों के आलेख प्रकाशित हैं। अनेक मुख्यमंत्री, केंद्रीयमंत्रियों के शुभकामना संदेश भी प्रकाशित हैं।
डॉ. शीतलचंद्र जैन जयपुर, डॉ. श्रेयांस कुमार जैन बड़ौत- अध्यक्ष अखिल भारतवर्षीय दिगंबर जैन शास्त्रि-परिषद, राष्ट्पति पुरस्कार से सम्मानित प्रोफेसर फूलचन्द्र प्रेमी वाराणसी, प्रोफेसर जयकुमार जैन मुजफ्फरनगर, प्रोफेसर नरेन्द्र कुमार जैन टीकमगढ़, ब्र. जयकुमार निशान्त टीकमगढ़
प्रोफेसर नलिन के शास्त्री दिल्ली, प्रोफेसर जयकुमार उपाध्ये दिल्ली,पंडित विनोद कुमार जैन रजवांस, डॉ. सुरेन्द्र कुमार जैन भारती बुरहानपुर, डॉ. अनेकांत जैन दिल्ली, डॉ आनंद प्रकाश जैन कोलकाता, डॉ. ज्योतिबाबू जैन उदयपुर, डॉ. पंकज जैन इंदौर, डॉ चिरंजी लाल बगड़ा कोलकाता, डॉ. सोनल कुमार जैन दिल्ली, डॉ. सुनील जैन संचय ललितपुर, डॉ. आशीष जैन आचार्य सागर, डॉ. सुधीर जैन बारामती, डॉ. आशीष जैन (बम्होरी) दमोह, टोंक जिला प्रमुख श्रीमती सरोज बंसल आदि ने पुस्तक का विमोचन किया। संपादक डॉ सुनील संचय ललितपुर ने प्रथम प्रति आचार्यश्री के कर कमलों में भेंट कर आशीर्वाद लिया।
इस मौके पर आचार्य श्री वर्द्धमानसागर जी महाराज ने कहा कि आचार्य श्री शांतिसागर जी श्रमण साधु परम्परा कुल के पितामह थे हैं और रहेंगे ।आचार्यश्रीआत्म विद्या के महाज्ञानी थे उनमें आत्मज्ञान बहुत था ,आत्मा ही सर्वश्रेष्ठ है, वह अनासक्ति के सर्वोच्च शिखर पर रहे। गृहस्थ अवस्था से वह अनासक्ति और निष्प्रही रहे, उनमें बचपन से वैराग्य और चारित्र था , वह अपने ज्ञान से सभी को वह स्वाध्याय की प्रेरणा देते थे। हम उनके जैसी तपस्या नहीं कर सकते किंतु समन्वय का गुण, संघ परंपरा अनुसार आज भी विद्यमान हैं।
इस अवसर पर मुनि श्री हितेंद्रसागर जी महाराज ने कहा कि बीसवीं सदी के प्रथमाचार्य चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर जी ने मुनिचर्या का पुनरूत्थान, चतुर्विध संघ की स्थापना, जिनालय संरक्षण, गृहीत मिथ्यात्व का त्याग, जैन मंदिर संकट निवारण आदि अनेक ऐतिहासिक कार्य किए।
इस अवसर पर संपादक डॉ सुनील संचय का वात्सल्य वारिधि आचार्य वर्द्धमानसागर वर्षायोग समिति एवं सकल जैन समाज टोंक के पदाधिकारियों अध्यक्ष धर्मचंद जैन दाखिया, भागचंद जैन, संयोजक कमल आंडरा, अशोक झिराणा, राजेश जैन, अनिल कंटान, सुमित दाखिया, अमित दामुनिया, लोकेश जैन आदि ने प्रमाण पत्र, माला, तिलक, स्मृति चिन्ह, साहित्य, दुप्पट्टा आदि के द्वारा भव्य सम्मान किया।
पत्रकार रामजी तिवारी मड़ावरा
चीफ एडिटर टाइम्स नाउ बुन्देलखण्ड
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