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“शब्दों की शौर्यांजलि” – अमर शहीद चन्द्रशेखर ‘आजाद’ की जयंती पर कवियों ने दी काव्यांजलि, राष्ट्र प्रेम से गूंजा साहित्यिक मंच

ललितपुर। उत्तर प्रदेश साहित्य सभा के तत्वावधान में देश के अमर क्रांतिकारी चन्द्रशेखर ‘आजाद’ की 119वीं जयंती के पावन अवसर पर एक गरिमामयी काव्य गोष्ठी एवं वैचारिक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। यह आयोजन वरिष्ठ कवि, राष्ट्रवादी विचारक वीरेन्द्र ‘विद्रोही’ के साहित्यिक प्रतिष्ठान पर संपन्न हुआ, जो साहित्य और शहादत के मिलन का एक ऐतिहासिक क्षण बन गया।
गोष्ठी का उद्देश्य केवल ‘आजाद’ के बलिदान को स्मरण करना ही नहीं था, बल्कि उनके विचार, आत्मगौरव और स्वाभिमान को आज की युवा पीढ़ी तक पहुंचाने का प्रयास था। इस मौके पर काव्य जगत के प्रतिष्ठित रचनाकारों ने अपने ओजस्वी, मार्मिक और राष्ट्रप्रेम से परिपूर्ण काव्य के माध्यम से अमर शहीद को श्रद्धांजलि अर्पित की।
कार्यक्रम के सूत्रधार एवं संयोजक महेश ‘मास्साब’ ने स्वागत वक्तव्य में कहा – “आजाद केवल इतिहास के पन्नों में नहीं, हमारी आत्मा में जीवित हैं। उनके विचार आज भी अन्याय और गुलामी के विरुद्ध हमारा मार्ग प्रशस्त करते हैं।”
वरिष्ठ कवि सुदेश सोनी, जो अध्यक्षता कर रहे थे, ने अपनी भावभीनी कविता से सभी को गहराई से प्रभावित किया: “वो तो आज़ादी की ख़ातिर, मुल्क पर कुरबान थे,
किसने सोचा कैसे उनके, ख़्वाब थे अरमान थे…”
राष्ट्रवादी कवि शीलचन्द्र जैन शास्त्री ‘शील’ ने चन्द्रशेखर के तेजस्वी व्यक्तित्व को शब्दों में बाँधते हुए कहा: “आजादी का थकित सूर्य सोया था घोर तिमिर में,
आशाओं की रश्मि दिखायी देती थी न अंबर में,
तब, मूर्तिमान हो उठा देश का शौर्य चन्द्रशेखर में,
स्वाभिमान की दिव्य दीप्ति प्रसारी जैसे दिनकर ने…”
पुरुषोत्तम नारायण पस्तोर ने देश की समकालीन सामाजिक चुनौतियों से जोड़ते हुए ओजस्वी कविता प्रस्तुत की, जिसमें ‘आजाद’ की प्रासंगिकता को रेखांकित किया गया।
गीतकार अखिलेश सांडिल्य ‘अखिल’ ने अपनी रचना में देशप्रेम को मधुरता और मार्मिकता के साथ प्रस्तुत किया।
कवि वीरेन्द्र ‘विद्रोही’ ने अपनी हृदयस्पर्शी राष्ट्रवादी कविता से मंच को गूंजा दिया: “देश की सुरक्षा हेतु, पापा मेरे जाना तुम,
इस बार जंग पापा, जीतकर के आना तुम,
इस बार कोई भी खिलौने न दिलाना तुम,
दुश्मनों की पापा, खाल खींच कर के लाना तुम।”
यह कविता न केवल एक बालक की मासूम व्यथा थी, बल्कि एक सम्पूर्ण राष्ट्र की संवेदना और प्रतीक्षा की आवाज़ थी।
इस आयोजन की अध्यक्षता वरिष्ठ कवि सुदेश सोनी ने की, जिन्होंने अपने वक्तव्य में कहा – “आजाद का जीवन केवल स्वतंत्रता संग्राम की गाथा नहीं, बल्कि आत्मबल, अस्मिता और अदम्य साहस का पाठ है, जिसे हर युवा को पढ़ना चाहिए।”

कार्यक्रम का संचालन शीलचन्द्र शास्त्री ‘शील’ ने अत्यंत गरिमामय एवं ओजस्वी शैली में किया, उन्होंने कहा – “हमें साहित्य को केवल मनोरंजन का माध्यम नहीं, बल्कि राष्ट्र निर्माण का औज़ार बनाना होगा। आजाद जैसे महापुरुषों की स्मृति को अक्षुण्ण बनाए रखना साहित्यिक समाज की जिम्मेदारी है।”
इस कार्यक्रम ने यह स्पष्ट किया कि देश के प्रति प्रेम केवल झंडे फहराने से नहीं, बल्कि विचारों को जीने से प्रकट होता है।
चन्द्रशेखर आज़ाद की जीवनगाथा आज के युग में भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी स्वतंत्रता संग्राम के समय थी। ऐसे आयोजनों के माध्यम से उनकी ज्वाला को साहित्य की मशालों से आगे बढ़ाया जा रहा है।

यह काव्य गोष्ठी और वैचारिक संगोष्ठी एक आत्मा को आत्मा से जोड़ने वाली सांस्कृतिक अनुभूति बन गई, जिसमें हर कवि ने कलम से कसम खाई कि आज़ाद की भावना को कभी मरने नहीं देंगे।

पत्रकार रामजी तिवारी मड़ावरा
चीफ एडिटर टाइम्स नाउ बुन्देलखण्ड
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