*”भक्ति का आधार सेवा, सुमिरन, सत्संग है”* *प्रतिपल समर्पित भक्ति भाव से भरा जीवन सतगुरु कृपा से ही सम्भव है* *भक्ति मार्ग स्वयं की यात्रा है इस दातार से जुड़ने का एक सरल मार्ग है*

ललितपुर।
निरंकारी सतगुरू माता सुदीक्षा जी महाराज जी की असीम कृपा से निरंकारी सत्संग का आयोजन संत निरंकारी शाखा मंडल ललितपुर (रजि.) द्वारा ब्रम्हज्ञानी संत हरि मोहन शर्मा जी (मऊरानीपुर) के सानिध्य में सन्त निरंकारी सत्संग भवन, प्राथमिक विद्यालय के पास, खिरक़ापुरा बाई पास रोड, ललितपुर में हुआ।
सतगुरू अमृत वचन प्रदान करते हुए ब्रम्हज्ञानी संत हरि मोहन शर्मा जी ने कहा कि भक्ति का आधार सेवा, सुमिरन, सत्संग है। आज समय की सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ब्रह्मज्ञान की दात देकर मानव जीवन को धन्य बना रहीं हैं। उन्होंने कहा कि ‘प्रतिपल समर्पित भाव से जीवन जीने का नाम ही भक्ति है जिसमें जीवन का हर पल उत्सव के समान बन जाता है। उन्होंने कहा कि सतगुरू माता जी ने फरमाया है कि भक्ति का अर्थ तो सरल अवस्था में जीवन जीना है जिस पर चलकर आनंद की अवस्था को प्राप्त किया जा सकता है। इसमें चतुर चालाकियों का कोई स्थान नहीं। भक्ति तो सपूर्ण समर्पण वाली भावना है जिसमें समर्पित होना ही सर्वोपरि है। उन्होंने कहा कि संतों, महापुरूषों के वचनों से हमें निरंतर यही शिक्षा मिलती आ रही है कि हमने औरो को प्राथमिकता देनी है किन्तु हम प्रायः ऐसा नहीं करते। हम प्रथाओं एंव आडम्बरों में ऐसे बंध जाते है कि भ्रमों में उलझकर रह जाते है।
उन्होंने कहा कि जब हम पर सतगुरु की कृपा होती ही है तभी हम परम पिता परमात्मा के स्वरूप का दीदार कर पाते हैं। वास्तविकता यही है कि जब हम सतगुरु कृपा से जब इस निरंकार पारब्रह्मपरमात्मा से जुड़ते है तब हमारे सभी भ्रम समाप्त हो जाते हैं। उन्होंने कहा की सत्गुरू माता जी ने बाबा गुरबचन सिंह जी की शिक्षाओं से एक उदाहरण दिया कि जिस प्रकार एक घर बनाने से पूर्व उसका नक्शा बनता है। फिर उस पर ही घर का निर्माण किया जाता है। जब तक यह निर्मित नहीं होता उसका आनंद प्राप्त नहीं किया जा सकता। ठीक उसी प्रकार भक्ति का आधार सेवा, सुमिरन, सत्संग है जिसमें हमने सभी से मीठा बोलते हुए सभी के लिए परोपकार की भावना रखनी है किन्तु यह धारणा वास्तविक रूप में होनी चाहिए न कि दिखावे वाली।
भक्ति स्वंय की यात्रा है इस दातार से जुड़ने का एक सरल मार्ग है। ऐसी भक्ति ही जीवन को सार्थक बनाती है और दुनियावी दिखावों से मुक्त करती है। भक्ति से सराबोर संत अपना जीवन साधारण रूप में जीता है और दुनियाची चकाचौंध का फिर उस पर प्रभाव नहीं पड़ता। वह दूसरों के दुख को समझाते हुए उनके प्रति अपनत्व का माय ही अपनाता है। उसका जीवन एक नदी के समान प्रवाहित होने वाली एक अवस्था बन जाता है।
माया के प्रभाव का जिक्र करते हुए सत्गुरू माता जी ने समझाया है कि जिस प्रकार निरंकार की बनाई हुई सृष्टि में अनेक भिन्नताएं होते हुए भी सभी में इस निरंकार का वास है उसी प्रकार संसार की हर एक वस्तु जिसमें माया का स्वरूप है वह क्षणभंगुर है, अतः उससे जुड़ाव न करके इस स्थिर परमात्मा से जुड़ना है। संतों के जीवन से प्रेरणा लेते हुए अपनी भक्ति को दृढ बनाना है। उन्होने पुरातन संतों की भक्ति भावना से प्रेरणा लेकर अपने जीवन को सार्थक बनाने का आह्वान किया। सत्संग को सफल बनाने में संयोजक महात्मा बीरेंद्र कुमार सहित सभी महात्माओं का सराहनीय योगदान रहा। उक्त जानकारी मीडिया सहायक मानसिंह ने दी।
पत्रकार रामजी तिवारी मड़ावरा
चीफ एडिटर टाइम्स नाउ बुन्देलखण्ड
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