नन्हीं गौरैया के संरक्षण को बच्चों ने बनाये घौंसले बच्चों ने लिया संकल्प,स्कूल,घर,बालकनी में लगायेंगे गौरैया घौंसला-

(ललितपुर) बदलते हुए परिवेश में आज घरेलू पक्षी गौरैया गुम होती हुई नजर आ रही है। गौरैया को बचाना है तो उसका संरक्षण भी करना होगा। ग्रामीण बच्चों ने भी करुणा इंटरनेशनल से जागरूक होकर संकल्प लिया कि वह अपने घरों में गौरैया घोंसला लगाकर गौरैया के संरक्षण को आगे आयेगें।निशा कुशवाहा बतातीं हैं कि मैं घर में गौरैया का घौंसला लगाकर उसका संरक्षण करुंगी। मुझे गौरैया की चीं-चीं की आवाज बहुत ही पसंद है। मेरे विद्यालय में गौरैया घौंसले लगे हुए हैं जिनमें गौरैया आकर बैठती है।मुझे उसकी चीं-चीं की आवाज बहुत ही मनमोहक लगती है।मैं अपनी सहेलियों को भी घरों में गौरैया घोंसला लगाने के लिए प्रेरित करूंगी।सोनिका यादव ने बताया कि गौरैया की चीं-चीं की आवाज अब चंद घरों में ही सिमट कर रह गई है। एक समय था जब उनकी आवाज सुबह और शाम को आंगन में सुनाई पड़ती थी।लोकेंद्र झां ने बताया कि आज के परिवेश में आये बदलाव के कारण वह शहर से दूर होती जा रही है। गांव में भी उनकी संख्या कम हो रही है। अर्पित यादव का कहना है कि गौरैया को
बचाने के लिए बच्चों को आगे आना होगा।
घरों में गौरैया घर लगाकर गौरैया को बुलाना होगा। तब गौरैया हमारे घर,आंगन में फुदकती हुई दिखाई देगी। करुणा इंटरनेशनल संस्था द्वारा गौरैया संरक्षण हेतु बच्चों को जागरूक किया जा रहा है।पूर्व माध्यमिक विद्यालय टोडी के बच्चों ने चित्रकला प्रतियोगिता में आकर्षक चित्र एवं गत्ते के गौरैया वाक्स बनायें।जिससे बच्चे गौरैया पक्षी के संरक्षण को आगे आयें।करूणा इंटरनेशनल के संयोजक पुष्पेंद्र जैन बताते हैं कि गौरैया का संरक्षण करना है तो नौनिहालों को आगे लाकर उन्हें गौरैया पक्षी के महत्व को समझाना होगा।जिससे जागरूक होकर बच्चे गौरैया संरक्षण को आगे आयें।मौजूदा समय में गौरैया की आबादी में 60 से 80 फीसदी तक की कमी आई है। यदि इसके संरक्षण के उचित प्रयास नहीं किए गए तो हो सकता है कि गौरैया इतिहास की चीज न बन जाए और भविष्य की पीढ़ियों को यह देखने को ही न मिले।एक समय था जब घर-घर में गौरैया दिखती थीं, लेकिन समय के साथ पक्के मकानों और कम होते जंगलों के कारण गौरैया के कुनबे भी कम हो गए, जिसका असर पर्यावरण पर भी पड़ रहा है। ऐसे में आंखों से ओझल हो रही गौरेया को बचाने के लिए बच्चों को जागरूक करने की आवश्यकता है।जिससे गौरैया का संरक्षण हो सके।
पत्रकार रामजी तिवारी मड़ावरा
चीफ एडिटर टाइम्स नाउ बुन्देलखण्ड
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