उत्तर प्रदेशललितपुर

जीवन के बेसुरेपन को दूर करके गीता ज्ञान , क्या है ? और क्या होना चाहिए ? के मध्य व्यवहारिकता का पुल बिछाता है

ललितपुर । गीता जयंती के पावन अवसर पर आयोजित एक परिचर्चा को संबोधित करते हुए नेहरू महाविद्यालय के सेवानिवृत प्राचार्य प्रो. भगवत नारायण शर्मा ने कहा कि सारे संसार में प्रेम से पढ़ा जाने वाला ग्रंथ ” गीता ” हजारों वर्षों से ज्ञान और कर्म का आलोक बिखेर रहा है । जीवन के बेसुरेपन को दूर करके गीताज्ञान, क्या है ? और क्या होना चाहिए ? के मध्य व्यवहारिकता का पुल बिछाता है । ” गीता “में कृष्ण-अर्जुन संवाद में जो कुछ है , वह दूसरी जगह भी मिल सकता है पर जो इसमें नहीं है वह कहीं भी नहीं मिल सकता । ” गीता ” हमसे कहती है – हम संसार में रहें , संसार छोड़ भागें नहीं । योगेश्वर कृष्ण अर्जुन के रथ के सारथी हैं । उसके ज्ञान प्रदाता भी हैं , और शाम के समय युद्ध बंद होने पर घोड़ों को पानी पिलाते हैं । अपने पीतांबर में दाना -रतेवा बांधकर घोड़ों को खिलाते हैं । राजसूय यज्ञ में भंडारे की जूठी पत्तलों को उठाकर स्वच्छता का जिम्मा स्वयं लेते हैं । अंग्रेज प्रशासक वारेन हेस्टिंग्स ने विश्व के प्रथम गीता के अनुवाद की अंग्रेजी अनुवाद की भूमिका में लिखा है कि जब भारत में ब्रिटिश साम्राज्य लुप्त हो जाएगा तब इसके धन और समृद्धि के स्रोतों की याद भी बाकी ना रहेगी , तब गीता के सार्वभौम सिद्धांत विश्व के लाखों लोगों को प्रेरणा देते रहेंगें । महाभारत के जो 700 श्लोक गीता के कृष्णा अर्जुन संवाद के रूप में माने जाते हैं , वे कुरुक्षेत्र की युद्ध भूमि में दिए गए हैं । अतः गीता जीवन में सतत चलने वाले संघर्ष की प्रेरणा देती है कि मनुष्योचित जीवन की स्थापना के लिए हम अर्जुन की तरह मानव द्रोही नर पिशाचों पर सर-सर तीर चलाते हुए विजय प्राप्त करें ।
स्वयं को निमित्त और ईश्वर को साक्षी-दृष्टा मानकर , फल की इच्छा किये बिना कर्म करो !कर्म करो। इसके अलावा दूसरा रास्ता नहीं ।
स्वामी विवेकानन्द का कहना है कि-” गीता ” सबसे पहले विद्यार्थियों को खेल के मैदान में पढ़ाई जानी चाहिए , जहां पर हार होने पर ना तो हताश निराश हों , और ना जीतने पर अहंकार में आ जाएं । हार और जीत को समान भाव से मानकर अग्रसर हो ।

पत्रकार रामजी तिवारी (मडावरा)
संपादक टाइम्स नाउ बुन्देलखण्ड
#Timesnowbundelkhand

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