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खेल दिवस / जयंती विशेष / मेजर ध्यानचंद हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचन्द जितने अच्छे खिलाड़ी थे , उससे कहीं ज्यादा एक अच्छे इन्सान थे

ललितपुर। हाॅकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद की जयंती पर आयोजित एक परिचर्चा को संबोधित करते हुए नेहरू महाविद्यालय के सेवानिवृत्त प्राचार्य प्रो. भगवत नारायण शर्मा ने कहा कि वर्ष 1979 में समाजसेवी स्व.डाया भाई पटेल के लोकप्रिय इकलौते पुत्र भानूभाई पटेल की स्मृति में आयोजित हॉकी टूर्नामेन्ट की ओर से कॉलेज के तत्कालीन छात्र नेता अशोक गोस्वामी और उनके साथियों को झाँसी मेजर ध्यानचंद जी को चीफ गेस्ट के रूप में आमंत्रित करने के लिए भेजा । तो उन्होंने तत्काल सहर्ष स्वीकृति दे दी । खबर मिलने पर आयोजकों और खिलाड़ियों में खुशी की लहर दौड़ गई । और कॉलेज के विद्यार्थी अपने हाथ से ग्राउण्ड को समतल बनाने और कंकड़ों को बीनने में लग गये ।
टूर्नामेण्ट का शुभारम्भ करने के लिए एक ओर सेन्टर फारवर्ड छात्र अशोक गोस्वामी तथा दूसरी ओर मुख्य अतिथि दद्दा बुली के समय प्रतिस्पर्धी टीम की ओर से हॉकी लेकर मजबूती से खड़े हो गये । विद्यार्थियों का पूर्वानुमान था कि बुढ़ापे के कारण वे स्ट्रोक बहुत धीमी गति से लगायेंगे । लेकिन उन्होंने पूरे दम-खम के साथ अपनी पूरी शक्ति लगा दी ।पूरा ऐरीना देखकर हतप्रभ रह गया । उन्होंने बच्चों के समझाया कि खेल के मैदान में खिलाड़ियों का जज्बा ऐसा होना चाहिए जैसे ‘ तुम नहीं या हम नहीं ‘ । आयोजक मंडल के सदस्यों में समाजसेवी डॉ रमेश किलेदार , जिनेन्द्र नजा और कैलाश ड्योढ़िया आदि के साथ कालेज के तत्कालीन खिलाड़ियों में सेन्टर फारवर्ड अशोक गोस्वामी , कप्तान स्व , कमरुद्दीन , मक्खनलाल काटजू , बाबू सतीश रजक , अशोकनिधान पाण्डेय , स्व. रूपनारायण शर्मा , पवन रजक आदि शामिल थे । नगर के खेलप्रेमियों में जम्मू कश्मीर में पुलिस अधीक्षक के पद पर तैनात शोएब अली , वयोवृद्ध याकूब साहब , मरहूम अजमुल साहब और स्व. हीरालाल गोस्वामी आदि ने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया था ।
दद्दा का ललितपुर से विशेष रागात्मक रिश्ता ललितपुर से रहा क्योंकि ललितपुर जिले के बालाबेहट के प्रतिष्ठित क्षत्रिय परिवार में उनका समधियाना था । इस नाते वे प्राय: ललितपुर आते जाते रहते थे । और यहां पर सुपरिचितों से घुल-मिल जाते थे । सन् 1955 में जब मैं वर्णी कॉलेज में कक्षा 11 में पढ़ता था , तब मेरे सहपाठियों ने अपने मध्य उन्हें बुलाने की बालहठ पकड़ ली,तो वे कॉलेज में सहर्ष पूर्व निर्धारित कार्यक्रम स्थगित कर ,आ गए ।परंतु कॉलेज में प्ले ग्राउंड ना होने पर विद्यार्थियों के साथ पैदल चलकर पुलिस लाइन ग्राउंड पर बुढ़ापे में भी सरल , तरल बच्चा बनकर घुल-मिल गए और पूरे दम-खम के साथ खेले । इतना ही नहीं सभी सहभागियों की कापियों पर ,खेल खत्म होने पर यह टिप्पणी अंकित की – ” ही प्लेड मी वैरी वैल ” ऐसे सौभाग्यशाली सहपाठियों में ,एक मैं भी था ।
परतंत्र भारत में तीन ओलंपिक सन् – 1928, 32 और 36 में देश को स्वर्ण पदक दिलाकर ,देश का माथा ऊँचा किया।जब सन -1936 में उन्होंने जर्मनी को हॉकी में 8 -1 से हराया तो हिटलर उनके कौशल को देखकर भौंचक्का रह गया।उन्हें सेना में ऊंचे से ऊंचे पद और आर्थिक लाभ पहुंचाने की पेशकश की , पर वे जरा भी विचलित नहीं हुए । आज के समय में तो सर्वोच्च खिलाड़ियों पर बेशुमार धन की वर्षा होने लगी । परन्तु आजाद भारत में आजन्म वे अतिसामान्य युवाशक्ति को अपना असाधारण अनुभव और कौशल हस्तांतरित करते रहे।निःसंदेह वे जितने अच्छे खिलाड़ी थे उससे भी ज्यादा एक सच्चे महामानव थे।

पत्रकार रामजी तिवारी मड़ावरा
चीफ एडिटर टाइम्स नाउ बुन्देलखण्ड
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