
ललितपुर। प्रेम वासना के कारण वदनाम हुआ है वात्सल्य के कारण नहीं। प्रेम वात्सल्य आत्मा का स्वभाव है, गुण है, सम्पत्ति है। जहाँ प्रेम होता है वहाँ श्रृद्धा अनुकम्पा, करुणा, दया शांति संवेग और प्रसम भाव होता है। ढाई अक्षर प्रेम के है, ढाई अक्षर आत्मा के है और ढाई अक्षर मोक्ष के है, प्रेम के ढाई अक्षर से रिश्ता चलता है। आत्मा के ढाई अक्षर से जीवन चलता है और मोक्ष मार्ग मिलता है। मोक्ष के ढाई अक्षर से सच्चा सुख मिलता है। यह उदगार आचार्य निर्भयसागर महाराज ने ललितपुर के अटा जैनमन्दिर में धर्म सभा मे व्यक्त किए। आचार्यश्री ने कहा
प्रेम के बिना मुक्ति नहीं मिलती। जब बच्चा जन्म लेता है तब उसे मां से प्रेम होता है। थोड़ा बडे़ होने पर उसे अपनी मित्र मण्डली से प्रेम होता है फिर उसे अपनी पुस्तकों से प्रेम होता उसके बाद धन से प्रेम उसके बाद पत्नी से उसके बाद परिवार उसके बाद समाज से उसके बाद गुरुओं से और उसके बाद अपनी आत्मा से। आत्मा से प्रेम जागने पर व्यक्ति राग- द्वेष मोह से विरक्त होकर मुक्ति के मार्ग पर बड़ता है और एक दिन मोक्ष को प्राप्त कर लेता है। उन्होंने कहा धन का वंटवारा तो सभी करते है पर प्रेम का वंटवारा भी करना चाहिए जिससे घर , परिवार, समाज और देश के झगड़े मिट जाये। प्रेम का बंधन अदृश्य होता है लेकिन बड़ा मजबूत होता है। जिसके हृदय में प्रेम होता है वह परोपकार, दया, करुणा, प्रसंशा की भावना से ओतप्रोत होता है। प्रवचन से पूर्व पूर्वाचार्यों के चित्र का अनावरण एवं द्वीप प्रज्वलन हुआ। प्रवचन के उपरांत महरौनी समाज के निवेदन पर आचार्यश्री ने अपने दो शिष्यों के महरोनी में चातुर्मास करने की घोषणा की। जिसे सुनकर सभी महरोनी वासी खुशी से झूमने उठे। नगर में आचार्य श्री के सत्संग पदार्पण से जैन समाज में धार्मिक माहौल बना हुआ है। जैन पंचायत के महामंत्री आकाश जैन ने बताया कि आगामी 6 जुलाई रविवार को अपराह्न 1 बजे आचार्य संघ की मंगल चातुर्मास कलश स्थापना कार्यक्रम अभिनंदनोदय तीर्थ क्षेत्रपाल मन्दिर ललितपुरका से होगा।
पत्रकार रामजी तिवारी मड़ावरा
चीफ एडिटर टाइम्स नाउ बुन्देलखण्ड
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