धर्ममहरौनीललितपुर

*रिश्तो को तौला नहीं जाता – वैज्ञानिक संत आचार्य श्री निर्भयसागर* *नफरत से नफरत मिले, प्यार से प्यार* *जैसा बीजा बोया, वैसा फल तैयार*

महरौनी, ललितपुर-
आचार्य श्री ने महरौनी में प्रवचन के दौरान कहीं, उन्होंने कहा यदि हम किसी के लिए बुरा सोचते है तो वह भी हमारे बुरा ही सोचेगा। यदि अच्छा विचार करेगे तो वह भी अच्छा सोचेगा क्योंकि मन की तरंगें प्रकाश तरंगों से अधिक गतिशील होती है। प्रत्येक व्यक्ति को दूसरों का ध्यान रखकर परोपकार की भावना रखना चाहिए यही सच्चा धर्म है। आचार्य श्री ने जीवन की तीन अवस्थाओं की तुलना करते हुए कहा कि बाल्यावस्था सतयुग के समान है, युवा अवस्था त्रेतायुग के समान और वृद्धा अवस्था कलयुग के समान होती है। प्रत्येक श्रावक को धन के बंटवारे साथ साथ प्रेम और समय का बटवारा भी करना चाहिए तभी जीवन और परिवार दोनों मैं सुख शांति और आनंद होगा। बुद्धि, विवेक, विनम्रता, साहस, ईमानदारी, परोपकार, विश्वास,सदाचरण, मेहनत/पुरुषार्थ और समता जिसमें यह 10 गुण होते हैं उसकी हर जगह विजय, सम्मान और प्रशंसा होती है। प्रतिभा पुरुषार्थ से मिलती है,ख्याति सफलता से मिलती है और मुक्ति रत्नत्रय से मिलती है। कान भरने वालों की नहीं बल्कि काम करने वालों की प्रशंसा और कद्र करना चाहिए। आचार्य श्री ने कहा सहनशील, विनयशील, गुणशील, पर प्रशंसनीय और दूसरों को सुखी संपन्न देखने वाले हमेशा सुखी संपन्न और आनंदमय जीवन जीते हैं। सुख लूटने से नहीं लौटने से प्राप्त होता है। दूसरों के द्वारा किया गया परोपकार हमारे लिए धरोहर होती है। समय का शिकार हुआ व्यक्ति बुरी तरह से घायल होता है। रिश्तो को तौला नहीं जाता अपने घर के रहस्यों को खोला नहीं जाता। सफलता की खुशबू बिना फैलाए ही चारों ओर फैलती है। आत्म ज्ञान की अभिव्यक्ति मौन पूर्वक ध्यान करने से होती है।

पत्रकार रामजी तिवारी मड़ावरा
चीफ एडिटर टाइम्स नाउ बुन्देलखण्ड
Times now bundelkhand

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