वैज्ञानिक संत आचार्य निर्भय सागर जी महा मुनिराज ससंग शहर के अनेक मंदिरों में बहा रहे हैं ज्ञान की गंगा

टीकमगढ़. पू. वैज्ञानिक संत ससंघ सहित विगत आठ दिन से टीकमगढ़ में विराजमान है। अभी एक सप्ताह रुकने की सम्भावना है।
धर्म प्रभावना समिति के अध्यक्ष नरेंद्र जनता ने बताया आचार्यश्री के प्रतिदिन प्रातः 8:00 बजे से मार्मिक मंगल प्रवचन होतें है। स्वध्याय मे धार्मिक शिक्षण दिया जाता है और शाम को 6:30 बजे सेँ जुलन्त प्रश्नों के उत्तर आचार्यश्री के द्वारा हल किये जाते हैं। नरेंद्र जनता ने बताया की महाराज जी अभी बाजार जैन मंदिर में विराजमान है शहर के मंदिरों में अपने प्रवास के दौरान धर्म सभा में उपस्थित लोगों के मध्य प्रवचन के दौरान आचार्यश्री ने कहा मनुष्य के जीवन में भक्ति और विनय अवश्य होना चाहिए। जब वह प्रभु और गुरु को पूर्ण भक्ति और विनय के साथ नमस्कार करता है तो उसका उत्थान अवश्य होता है। गुरु जब आशीर्वाद देते हैं तो अपना उपदेश भी दे देते हैं कि सभी मिलकर के और झुक करके रहो तो हमेशा जीवन में सुख अनुभव करेंगे। उन्होंने कहा भगवान ने हमें दो कान और एक मुंह दिया है ताकि ज्यादा सुने पर बोले कम और दो आंख एक मुंह इसलिए दिया ताकि ज्यादा देखे पर बोले कम दो हाथ एक मुंह इसलिए दिया जिससे जितना अधिक खाये उससे अधिक श्रम करें। आचार्यश्री ने कहा साइन्स इज बिलाइन्ड बिदाउट रिलीजियन और रिलीजियन इज लेम बिदाउट साइन्स अर्थात धर्म के बिना विज्ञान अंधा है। और विज्ञान के बिना धर्म लंगड़ा है। अतः हमें दोनों को लेकर चलना चाहिए। क्योंकि विज्ञान व्यवहार है और धर्म निश्चय है। आत्मा का वह गुण जिसके द्वारा पदार्थ को जाना जाता है। वह ज्ञान है और जाने गये पदार्थ को आचरण में ढाल लेना, अनुभूति में ले आने का नाम विज्ञान है। अर्थात जो भगवान ने कहा वह जानना ज्ञान है और उसे प्रयोग में लाया तो वह विज्ञान है। इसलिए जैन धर्म वीतराग वैज्ञानिक है। आचार्यश्री ने कहा ज्ञान चार प्रकार का है 1. राइट नोलेज जिसे जैनागम के अनुसार सम्यग्ज्ञान कहते हैं। 2 . रोंग नोलेज जिसे मिथ्या ज्ञान कहते है। 3. ओनली नोलेज जिसे केवलज्ञान कहते हैं। 4. प्योर नोलेज जिसे सिद्धों का ज्ञान अर्थात क्षायिकज्ञान कहते हैं । इन चारों नोलेज में से हमें प्योर नोलेज को प्राप्त करना है।
पत्रकार रामजी तिवारी मड़ावरा
चीफ एडिटर टाइम्स नाउ बुन्देलखण्ड
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