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श्रुत पंचमी महापर्व पर विद्वत् परिषद के तत्वावधान आयोजित हुई व्याख्यानमाला ज्ञान आराधना और शास्त्र रक्षा का महापर्व है श्रुत पंचमी : प्रो. सुदर्शनलाल

प्राकृत दिवस के रूप में मनाई जाती है श्रुत पंचमी : प्रो. अशोक कुमार
भारत सरकार ने हाल में प्राकृत भाषा को शास्त्रीय भाषा घोषित किया है
श्रुत संरक्षण में जहां एक ओर श्रमण परंपरा का अमूल्य योगदान वहीं विद्वानों का योगदान भी अविस्मरणीय : डॉ. पंकज जैन
जैन परंपरा में शास्त्र लेखन की शुरूआत हुई थी
ललितपुर। अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन विद्वत् परिषद (रजि) के तत्वावधान में जैनधर्म के प्रमुख पर्व श्रुतपंचमी महापर्व पर श्रुत संरक्षण में विद्वानों की भूमिका विषय पर राष्ट्रीय व्याख्यानमाला का आयोजन परिषद के अध्यक्ष प्रोफेसर अशोककुमार जैन वाराणसी ( प्रोफेसर काशी हिंदू विश्वविद्यालय वाराणसी) की अध्यक्षता में आयोजित हुई।
व्याख्यान माला का शुभारंभ कुमारी आर्या जैन भोपाल के द्वारा प्रस्तुत प्राकृत भाषा के मंगलाचरण से हुआ। स्वागत भाषण परिषद के महामंत्री प्रोफेसर विजय कुमार जैन लखनऊ ने किया। परिषद के उपाध्यक्ष डॉ. सुरेन्द्र भारती बुरहानपुर ने परिषद की गतिविधियों की जानकारी दी। संचालन डॉ. सुनील संचय ललितपुर ( कार्यकारिणी सदस्य) ने किया। आभार व्यक्त परिषद के कोषाध्यक्ष महेन्द्र कुमार जैन प्राचार्य, मुरैना ने किया। तकनीकी संयोजन डॉ. प्रदीप जैन तारादेही ( कार्यकारणी सदस्य) ने किया।
अध्यक्षीय वक्तव्य में प्रोफेसर अशोक कुमार जैन वाराणसी ने कहा कि श्रुत के संरक्षण और संवर्धन में श्रमण परंपरा और विद्वानों की महती भूमिका रही है। प्राकृत पर्व के रूप में यह पर्व मनाना चाहिए। विद्वानों ने केवल द्रव्य श्रुत का ही नहीं भाव श्रुत के संरक्षण भी योगदान दिया है। साधुवर्ग, विद्वानों और श्रेष्ठियों को मिलकर श्रुत का संरक्षण करना चाहिए।
यह महापर्व न केवल शास्त्रों और ज्ञान के प्रति श्रद्धा प्रकट करता है, बल्कि संस्कृति, भाषा और परंपरा की महत्ता को भी उजागर करता है।
इस मौके पर राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित प्रोफेसर सुदर्शनलाल जैन भोपाल ( पूर्व संकाय प्रमुख संस्कृत विभाग काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी ) ने कहा कि ज्येष्ठ शुक्ल पंचमी तिथि को मनाए जाने वाला श्रुतपंचमी पर्व भारतीय संस्कृति में एक अनूठा पर्व है । श्रुतसंरक्षण केवल शास्त्रों के लेखन और संपादन से ही नहीं होता है शास्त्रों में वर्णित आचार और विचार का परिपालन करने से श्रुत की सच्ची प्रभावना होती है । प्रोफेसर सुदर्शन लाल जैन ने श्रुत पंचमी के ऐतिहासिक तथ्यों पर प्रकाश डाला तथा वर्तमान में विद्वानों को श्रुत के संरक्षण की दिशा में कैसे कार्य करना है इस पर उन्होंने अनेक सुझाव दिए।
युवा वक्ता के रूप में युवा मनीषी, चिंतक डॉ. पंकज जैन (ललितपुर वाले) भोपाल ने कहा कि श्रुत पंचमी पर्व के द्वारा दिगम्बर जैन साहित्य की प्राचीनता और प्रामाणिकता पुष्ट होती । श्रुतलेखन का इतना प्राचीन और पुष्ट प्रमाण किसी अन्य परंपरा में प्राप्त नहीं होता है । श्रुत संरक्षण में जहां एक और श्रमण परंपरा का अमूल्य योगदान है वहीं श्रुत संरक्षण में गृहस्थ विद्वानों के योगदान को विस्मृत नहीं किया जा सकता है । श्रुत संरक्षण में राष्ट्रकूट वंश के शासक राजर्षि अमोघवर्ष और चामुंडराय ने भी ग्रंथ लेखन का कार्य किया है । अपभ्रंश के महाकवि पुष्पदंत और रइधू का भी श्रुतसंरक्षण में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है । पंडित आशाधर जी, पंडित टोडरमल जी, पंडित दौलत राम जी आदि विद्वानों ने श्रुत संरक्षण की दिशा में अविस्मरणीय अवदान दिया है । जैन भक्त कवियों में पंडित द्यानतराय जी, पं. बनारसी दास जी , कवि वृंदावन जी, कवि भूधरदास एवं कवि संतलाल जी आदि का अविस्मरणीय अवदान है । 19वीं और 20वीं शती में गुरूणामगुरु पं. गोपालदास जी बरैया, क्षुल्लक श्री गणेश प्रसाद जी वर्णी, प्रोफेसर हीरालाल जी जैन अमरावती, सिद्धांतशास्त्री पंडित हीरालाल जी साडूमल, पंडित फूलचंद जी सिद्धांतशास्त्री, पंडित कैलासचंद जी शास्त्री, पंडित दरबारीलाल जी कोठिया, पंडित महेंद्र कुमार जी न्यायाचार्य, पंडित सुमेरुचंद जी दिवाकर आदि विद्वानों ने अथक सारस्वत श्रम किया है। वर्तमान विद्वानों को ज्ञान पक्ष के साथ-साथ अचार पक्ष पर ध्यान देने की अत्यधिक आवश्यकता है।
इस मौके पर जर्मनी से डॉ सुरेन्द्र जैन भारती, चंद्रेश शास्त्री भोपाल, सुरेन्द्र जैन वाराणसी, शीलचंद्र शास्त्री ललितपुर, पंडित जयकुमार जैन, संजीव शास्त्री आदि प्रमुख रूप से उपस्थित रहे।
उल्लेखनीय है कि ज्येष्ठ शुक्ल पंचमी को षटखंडागम ग्रंथ की रचना पूर्ण हुई थी जो कि प्राकृत भाषा में है। हाल ही में केंद्र सरकार ने प्राकृत भाषा को शास्त्रीय भाषा घोषित किया है।

पत्रकार रामजी तिवारी मड़ावरा
चीफ एडिटर टाइम्स नाउ बुन्देलखण्ड
Times now bundelkhand

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