
प्रकाशनार्थ आलेख- भगवान आदिनाथ के जन्मकल्याणक महोत्सव(23 मार्च) विशेष –
शिक्षा नीति के प्रथम शिक्षक: भगवान ऋषभदेव
प्रस्तुति- डॉ० राजेश जैन शास्त्री
भगवान ऋषभदेव को भारतीय परंपरा में शिक्षा नीति के प्रथम शिक्षक के रूप में विशेष स्थान प्राप्त है। जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर होने के साथ-साथ वे भारतीय संस्कृति और समाज के आद्य (प्रथम) गुरु भी माने जाते हैं। ऋषभदेव ने मानव समाज को जीवन जीने की कला, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के सिद्धांतों के साथ-साथ कृषि, व्यापार, राजनीति, प्रशासन, कला और संगीत जैसे विषयों का ज्ञान प्रदान किया। उन्होंने शिक्षा के माध्यम से समाज को व्यवस्थित और उन्नत बनाया। इस आलेख में हम भगवान ऋषभदेव के जीवन, उनके द्वारा दी गई शिक्षाओं और शिक्षा नीति पर उनके प्रभाव का विस्तृत वर्णन करेंगे।
● भगवान ऋषभदेव का जीवन परिचय-
भगवान ऋषभदेव का जन्म इक्ष्वाकु वंश में अयोध्या के राजा नाभिराज और रानी मरुदेवी के पुत्र के रूप में हुआ था। जैन धर्म के अनुसार, वे प्रथम तीर्थंकर थे और मानव सभ्यता के प्रवर्तक माने जाते हैं। ऋषभदेव का जीवनकाल अत्यंत महत्वपूर्ण रहा क्योंकि उन्होंने समाज को संगठित करने और एक सुव्यवस्थित जीवनशैली का मार्ग प्रशस्त किया।भगवान ऋषभदेव को जन सामान्य द्वारा आदिनाथ ,बड़े बाबा ,आदि प्रवर्तक आदि विभिन्न नामों से आराधना की जाती है ,जो उनको भव पार में सहायक है।
ऋषभदेव के सौ पुत्र थे, जिनमें भरत और बाहुबली प्रमुख थे। उनके पुत्र भरत के नाम पर ही इस देश का नाम “भारत” पड़ा। ऋषभदेव ने अपने पुत्रों को राजनीति, प्रशासन, न्याय और कूटनीति का ज्ञान दिया। उन्होंने समाज में श्रम विभाजन की स्थापना की, जिससे समाज के विभिन्न वर्गों को उनके कार्यों के अनुसार व्यवस्थित किया गया।
● ऋषभदेव द्वारा दी गई प्रमुख शिक्षाएं-
भगवान ऋषभदेव ने समाज को जिन प्रमुख शिक्षाओं से परिचित कराया, वे शिक्षा नीति के मूल स्तंभ माने जाते हैं। उनकी प्रमुख शिक्षाएं इस प्रकार थीं:-
● कृषि, व्यापार और शिल्पकला की शिक्षा
ऋषभदेव ने मनुष्यों को कृषि, पशुपालन, व्यापार और शिल्पकला का ज्ञान दिया। इससे पहले मानव समाज कल्पवृक्षों पर आश्रित था, लेकिन ऋषभदेव ने समाज को स्थायी आजीविका के साधनों से जोड़ा। उन्होंने लोगों को खेती करना, पशुपालन करना और व्यापार करना सिखाया।
● शासन और राजनीति का ज्ञान-
ऋषभदेव ने अपने पुत्र भरत को राजनीति और शासन का ज्ञान दिया। उन्होंने न्याय, प्रशासन और कूटनीति के नियमों को स्थापित किया। उन्होंने लोगों को बताया कि किस प्रकार एक शासक को न्यायप्रिय, धर्मपरायण और प्रजा का रक्षक बनना चाहिए।जिससे सम्पूर्ण विश्व को वह प्रेरणादायी बन सके।
● समाज व्यवस्था का निर्माण-
ऋषभदेव ने समाज में वर्ण व्यवस्था की नींव रखी तथा उन्होंने विभिन्न वर्गों का निर्माण किया, जिससे समाज में सुव्यवस्था और समृद्धि आई। उन्होंने लोगों को उनके कर्म और स्वभाव के अनुसार कार्य करने की प्रेरणा दी।
●धर्म और मोक्ष का ज्ञान-
ऋषभदेव ने मानव जीवन के चार पुरुषार्थ – धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का महत्व समझाया। उन्होंने बताया कि धर्म का पालन करते हुए अर्थ और काम की प्राप्ति करनी चाहिए और अंततः मोक्ष को प्राप्त करना चाहिए। उन्होंने ध्यान, तप, संयम और अहिंसा के मार्ग का प्रतिपादन किया।
●कलाओं और संगीत की शिक्षा-
ऋषभदेव ने मानव समाज को संगीत और नृत्य का ज्ञान दिया। उनके पुत्र भरत ने नाट्य शास्त्र की रचना की, जिससे भारतीय संगीत और नृत्य का विकास हुआ। ऋषभदेव ने समाज को कला और संस्कृति की दिशा में भी प्रेरित किया।
● शिक्षा नीति पर प्रभाव
भगवान ऋषभदेव द्वारा दी गई शिक्षाओं का प्रभाव भारत की शिक्षा नीति पर गहरा पड़ा। उनके द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों के आधार पर भारतीय शिक्षा व्यवस्था का आधार रखा गया। उनके द्वारा स्थापित श्रम विभाजन, धर्म आधारित जीवनशैली और न्यायप्रिय शासन प्रणाली ने समाज को स्थिरता और समृद्धि प्रदान की।
● व्यावहारिक शिक्षा का महत्व
ऋषभदेव ने शिक्षा को केवल ज्ञान तक सीमित न रखते हुए उसे जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में प्रयोग करने का मार्ग दिखाया। उन्होंने कृषि, व्यापार, शासन और शिल्पकला जैसी व्यावहारिक शिक्षा को महत्व दिया।
● नैतिक शिक्षा का आधार
ऋषभदेव ने सत्य, अहिंसा, संयम और तप के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी। इससे शिक्षा केवल सांसारिक लाभ तक सीमित न रहकर आत्मा की उन्नति का मार्ग बनी।
● समग्र शिक्षा प्रणाली
ऋषभदेव ने शिक्षा के माध्यम से व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और आत्मिक विकास को प्राथमिकता दी। उन्होंने शिक्षा को समग्रता के साथ अपनाने की प्रेरणा दी।
● ऋषभदेव के शिक्षा सिद्धांतों की वर्तमान प्रासंगिकता
भगवान ऋषभदेव द्वारा प्रतिपादित शिक्षा सिद्धांत आज भी प्रासंगिक हैं। जहाँ एक ओर सम्पूर्ण विश्व वैमनस्यता,ईर्ष्या,दम्भ को पुष्ट करने में अग्रसर है , वही हजारों वर्ष पूर्व भगवान ऋषभदेव ने इन सभी विकारों से ऊपर उठकर आगे बढ़ने की प्रेरणा दी थी।वर्तमान शिक्षा नीति में व्यावहारिक ज्ञान, नैतिक मूल्यों और कला-संस्कृति को प्रमुख स्थान दिया जा रहा है। शिक्षा का उद्देश्य केवल रोजगार प्राप्ति तक सीमित नहीं है, बल्कि व्यक्ति के सर्वांगीण विकास को भी प्राथमिकता दी जा रही है।
ऋषभदेव की शिक्षा नीति इस बात का प्रमाण है कि भारतीय समाज में शिक्षा केवल ज्ञान का साधन नहीं, बल्कि जीवन का मार्गदर्शन करने वाला माध्यम है। ऋषभदेव ने शिक्षा को आत्मा की शुद्धि, समाज के संगठन और मानव कल्याण का साधन बनाया।भगवान ऋषभदेव को भारतीय शिक्षा नीति के प्रथम शिक्षक के रूप में इसलिए माना जाता है। क्योंकि उन्होंने मानव समाज को व्यवस्थित जीवन, व्यावहारिक ज्ञान, नैतिक मूल्यों और धर्म के सिद्धांतों का ज्ञान दिया। उनकी शिक्षाएं आज भी भारतीय शिक्षा प्रणाली का आधार बनी हुई हैं। ऋषभदेव द्वारा प्रतिपादित शिक्षा सिद्धांतों ने समाज को संगठित, अनुशासित और उन्नत बनाया। उनके द्वारा दी गई शिक्षा नीति ने न केवल भारत को एक सशक्त राष्ट्र के रूप में खड़ा किया, बल्कि मानव समाज को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के पथ पर चलने की प्रेरणा भी दी।
डॉ ०राजेश जैन शास्त्री
पार्श्वनाथ जैन मंदिर इलाइट के पास
ललितपुर (उत्तरप्रदेश)
मो०- 9456449184
पत्रकार रामजी तिवारी मड़ावरा
चीफ एडिटर टाइम्स नाउ बुन्देलखण्ड
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