
पट्टाचार्य महोत्सव में लाखों का जनसैलाब, मुख्यमंत्री भी हुए शामिल
दान कोई सामाजिक व्यवस्था का वित्त प्रबंधन नहीं है अपितु यह चित्त प्रबंधन का एक उत्कृष्ट माध्यम है : डॉ सुनील संचय
शोधालेख में बताया कि दान से दुर्गति का नाश होता है
दान सुपात्र को दें, दान सच्चा धर्म बैंक
ललितपुर। जैनदर्शन व प्राकृत भाषा के अध्येता, नगर के युवा मनीषी डॉ. सुनील संचय ने हाल ही में “जलबिंदु महाकाव्य में वर्णित दान का स्वरूप” विषय पर अपना शोधालेख इंदौर महानगर के सुमतिधाम में आयोजित चर्या शिरोमणि आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज पट्टाचार्य महोत्सव में आयोजित गणाचार्य श्री विरागसागर जी महाराज कृत जल बिंदु महाकाव्य अनुशीलन राष्ट्रीय विद्वत् संगोष्ठी में प्रस्तुत किया। यह शोधालेख धार्मिक, सामाजिक और दार्शनिक दृष्टिकोण से जैनधर्म में दान की अवधारणा को गहराई से उजागर करता है।
डॉ. संचय ने अपने शोध में बताया कि जैनधर्म में दान को केवल भौतिक संपत्ति तक सीमित नहीं रखा गया है, बल्कि यह आहार,ज्ञान, अभय और औषधि जैसे विविध रूपों में भी माना गया है। उन्होंने कहा की जलबिंदु महाकाव्य में बताया है कि “दान केवल देने की क्रिया नहीं है, यह आत्मिक शुद्धि और मोक्षमार्ग का एक सशक्त साधन भी है।”
शोध में विशेष रूप से चार प्रकार के दान — आहार दान, औषधि दान, अभय दान और ज्ञान दान — का उल्लेख किया गया, जो जैन अनुयायियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माने जाते हैं।
जलबिंदु महाकाव्य गणाचार्य श्री विरागसागर जी की महत्वपूर्ण कृति है। इसमें पांच खंड हैं जिसमें 4थे खण्ड के 45वे अध्याय में 34 उप शीर्षकों से दान के स्वरुप को प्रतिपादित किया गया है।
जैन धर्म में श्रावक के लिए दान और पूजा को मुख्य कर्तव्य बताया गया है। शास्त्रों में उल्लेख है कि ‘ दानं दुर्गति नासनम अर्थात दान से दुर्गति का नाश होता है। दान कोई सामाजिक व्यवस्था का वित्त प्रबंधन नहीं है अपितु यह चित्त प्रबंधन का एक उत्कृष्ट माध्यम है। स्वयं अपना एवं दूसरे के उपकार के लिए अपनी वस्तु का त्याग करना दान कहलाता है। दान का उत्कृष्ट फल प्राप्त करने के लिए द्रव्य न्याय एवं नीति से उपार्जित होना चाहिए। जैन शास्त्र किसी भी रूप में यह आज्ञा नहीं देते कि अन्याय एवं पाप से धन अर्जित करो और उसका दान करते रहो एवं प्रतिष्ठा प्राप्त करो।
जलबिंदु महाकाव्य में बताया गया है कि दान सच्चा धर्म बैंक है जो कभी दिवालिया नहीं होता बल्कि सौ गुना और हजार गुना देता है।
दान हमें सुपात्र को ही देना चाहिए। सत्पात्रों को दिया गया अल्प दान भी समय पर विशाल फल देता है। जैसे भूमि में बोया गया बट का छोटा सा बीज कालांतर में विशाल वृक्ष बनकर छाया देता है। दान मोक्ष का सेतु है। जलबिंदु महाकाव्य में लिखा है कि जितना दान दोगे उतना ही बढ़ता जाएगा। जैसे कुआं, बाबड़ी से जितना जल निकलेगा उतनी ही उसकी झिर खुलती रहेगी। यदि कुएं से पानी न निकले तो वह सड़ जाएगा वैसे ही धन की स्थिति है।
सत्र की अध्यक्षता प्रो. श्रेयांस कुमार जैन बड़ौत अध्यक्ष अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन शास्त्रि-परिषद ने की। सत्र संचालन प्रतिष्ठाचार्य विनोद कुमार जैन रजवांस ने किया। इस मौके पर प्रोफेसर फूलचंद्र प्रेमी वाराणसी, ब्र. जयकुमार जैन निशान्त महामंत्री शास्त्रि परिषद, प्रोफेसर नलिन के शास्त्री दिल्ली, प्रोफेसर अशोक कुमार जैन (बीएचयू) वाराणसी, प्रोफेसर अनुपम जैन इंदौर, डॉ सुरेंद्र भारती बुरहानपुर, दिनेश जैन भिलाई, डॉ पंकज जैन इंदौर, डॉ आशीष जैन आचार्य सागर, डॉ सोनल जैन दिल्ली, डॉ आशीष जैन दमोह, डॉ अल्पना मोदी ग्वालियर , डॉ तेजस्विनी जैन बेंगलुरु आदि विद्वान प्रमुख रूप से उपस्थित रहे।
इस मौके पर आयोजन समिति सुमतिधाम इंदौर की ओर से सम्मानित किया गया।
इस अवसर पर कई धार्मिक विद्वानों और शोधकर्ताओं ने भी शोध की सराहना की और इसे जैनदर्शन की गहराइयों को समझने में सहायक बताया।
आयोजन में 12 जैन आचार्य व 400 से अधिक साधु- साध्वी मंचासीन रहे। लाखों श्रद्धालुओं का जनसैलाब देखने योग्य था। पट्टाचार्य महोत्सव 60 एकड़ में आयोजित किया गया । महोत्सव में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव, केबिनेट मंत्री कैलाश विजयवर्गीय के साथ उनके मंत्रिमंडल के अनेक मंत्री भी शामिल रहे।
पत्रकार रामजी तिवारी मड़ावरा
चीफ एडिटर टाइम्स नाउ बुन्देलखण्ड
Times Now Bundelkhand