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*गुर्दा प्रत्यारोपण: बेहतर स्वास्थ्य की ओर एक कदम*

*कानपुर*: गुर्दा प्रत्यारोपण (किडनी ट्रांसप्लांट) एंड-स्टेज किडनी फेलियर के लिए सर्वोत्तम उपचार है, जिसमें बहुत उच्च सफलता दर पाई जाती है। यह प्रक्रिया एक स्वस्थ किडनी को किसी जीवित या मृत दाता से लेकर उस व्यक्ति के शरीर में प्रत्यारोपित करने की होती है जिसकी किडनी सही ढंग से कार्य नहीं कर रही होती (15% से कम क्षमता)। यह प्रक्रिया उन मरीजों के लिए होती है जो पहले से ही डायलिसिस पर हैं या जो सीधे प्रत्यारोपण के लिए आगे बढ़ सकते हैं यदि उनकी स्थिति एनेस्थीसिया को सहन करने योग्य हो।

किडनी फेलियर के सबसे सामान्य कारणों में डायबिटीज, हाइपरटेंशन, किडनी के फिल्टर संबंधी विकार, पॉलीसिस्टिक किडनी डिजीज (आनुवंशिक), और दवाओं के कारण होने वाले नुकसान शामिल हैं। गुर्दा प्रत्यारोपण के लिए, मरीज और दाता की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए व्यापक जांच की जाती है। यदि कोई गंभीर चिकित्सीय स्थिति हो, तो उसे बाहर रखा जाता है, और प्रत्यारोपण से पहले मरीजों को स्वस्थ आहार और व्यायाम अपनाने की सलाह दी जाती है ताकि सफलता की संभावना अधिकतम हो सके।

*मैक्स स्मार्ट सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल, साकेत, नेफ्रोलॉजी और किडनी ट्रांसप्लांट मेडिसिन की प्रिंसिपल डायरेक्टर, डॉ. अल्का भसीन ने बताया कि* “गुर्दा प्रत्यारोपण के कई महत्वपूर्ण लाभ हैं, जिनमें जीवन की गुणवत्ता और अवधि में उल्लेखनीय सुधार शामिल है। प्रत्यारोपण के बाद मरीजों को डायलिसिस की आवश्यकता नहीं होती, जिससे उनके आहार पर लगे प्रतिबंध कम हो जाते हैं। इसके साथ ही, शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य बेहतर होने के साथ अधिक ऊर्जा का अनुभव होता है, जो उनकी समग्र जीवनशैली को सकारात्मक रूप से प्रभावित करता है। बेहतर यौन स्वास्थ्य और घर से दूर रहते हुए भी सुरक्षित यात्रा व इलाज की सुविधा, इसे मरीजों के लिए एक जीवन-परिवर्तनकारी प्रक्रिया बनाते हैं।“

गुर्दा प्रत्यारोपण के साथ कुछ जोखिम जुड़े होते हैं, लेकिन प्रत्यारोपण से पहले और बाद में उचित देखभाल से इन्हें काफी हद तक कम किया जा सकता है। संभावित जोखिमों में मूल किडनी रोग का नई किडनी में लौट आना, आजीवन इम्यूनोलॉजिकल दवाओं का सेवन और संक्रमण का खतरा शामिल है, जिसके लिए स्वच्छता बनाए रखना और सावधानीपूर्वक निगरानी आवश्यक है।

*डॉ. अल्का भसीन का कहना है,* “जीवित दाता से किए गए गुर्दा प्रत्यारोपण से लगभग 15-20 वर्षों तक डायलिसिस से छुटकारा मिलता है। यह प्रक्रिया मरीजों के जीवन को फिर से सामान्य बनाने में मदद करती है और उन्हें पहले से कहीं बेहतर जीवन जीने का अवसर देती है।
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पत्रकार रामजी तिवारी मडावरा
संपादक टाइम्स नाउ बुन्देलखण्ड
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