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मवेशी नहीं, मनीषी बनने का पुरुषार्थ करें – मुनि श्री गुरुदत्त सागर,

महरौनी,ललितपुर-
श्री अजितनाथ दिगंबर जैन मंदिर महरौनी में चातुर्मास व्रत कर रहे मुनि श्री गुरुदत्त सागर जी ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि मनुष्य का लक्ष्य केवल शारीरिक सुख-सुविधाओं और क्षणिक भोग-विलास तक सीमित नहीं होना चाहिए। उसे अपने ज्ञान, विवेक, बौद्धिक और आध्यात्मिक विकास की ओर अग्रसर होना चाहिए। उन्होंने कहा कि – “मवेशी यानी पशु केवल अपनी बुनियादी जरूरतों की पूर्ति में लगे रहते हैं, जबकि मनीषी वह होता है जो इंद्रियों पर नियंत्रण रखते हुए धर्म और नैतिक मूल्यों का पालन करता है। मनीषी व्यक्ति अपने ज्ञान और चेतना का उपयोग कर जीवन को ऊँचाइयों तक पहुंचाता है। इसलिए हमें मवेशी नहीं, मनीषी बनने का पुरुषार्थ करना चाहिए।”
मुनि श्री मेघदत्त सागर जी ने भी सभा को संबोधित करते हुए कहा कि मनुष्य का उद्देश्य केवल पेट भरना और भौतिक इच्छाओं की पूर्ति करना नहीं होना चाहिए। उसे पशु प्रवृत्तियों से ऊपर उठकर आत्मचिंतन, सत्य की खोज और आध्यात्मिक प्रगति की दिशा में भी प्रयास करना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि आलस्य, नकारात्मक विचार और निंदनीय कार्य मानव जीवन की प्रगति में बाधक होते हैं। इनसे बचकर ही हम सच्चे अर्थों में मानव धर्म का पालन कर सकते हैं।
धर्मसभा में बड़ी संख्या में श्रावक-श्राविकाओं की गरिमामयी उपस्थिति रही, जिन्होंने मुनिश्री के प्रवचनों से लाभ प्राप्त किया।

पत्रकार रामजी तिवारी मड़ावरा
चीफ एडिटर टाइम्स नाउ बुन्देलखण्ड
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