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रविवार को श्रद्धालुओं ने बनाये 25 लाख पार्थिव शिवलिंग सवा पांच करोड़ पार्थिव शिवलिंग निर्माण कार्यक्रम में उमड़े रहे हजारों श्रद्धालु

ललितपुर। सवा पांच करोड़ पार्थिव शिवलिंग निर्माण एवं श्री रूद्रमहायज्ञ आयोजन में रविवार को श्रद्धालुओं ने 25 लाख पार्थिव शिवलिंग का निर्माण किया। प्रातःकालीन बेला में श्रीरूद्रमहायज्ञ का पीठ पूजन व पंचांग पूजन आचार्यगण के द्वारा किया गया।
वहीं अपराह्न में पार्थिव शिवलिंग का पूजन व महारूद्राभिषेक किया गया। पार्थिव शिवलिंग का पूजन व महारूद्राभिषेक प्रधान यजमान हरिशंकर साहू ने किया। तत्पश्चात श्रद्धालुओं को अपने श्रीमुख से श्रीरामकथा का श्रवण कथावाचक श्रीचन्द्रभूषण पाठक कथा व्यास द्वारा कराया गया। श्रीराम कथा में प्रभु श्रीराम का जन्मोत्सव बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया गया। तत्पश्चात श्रद्धालुओं को कथा सुनाते हुए सदगुरूदेव परमपूज्य अनंतविभूषित चंडीपीठाधीश्वराचार्य महामण्डलेश्वर स्वामी चन्द्रेश्वर गिरि जी महाराज ने कहाकि गीता के अनुसार सनातन का अर्थ होता है जो सबसे पुराना हो, वो जो अग्नि से, पानी से ,हवा से, अस्त्र से नष्ट न किया जा सके और वो जो हर जीव और निर्जीव में विद्यमान है। धर्म का अर्थ होता है जीवन जीने की कला। सनातन धर्म की जड़े आद्यात्मिक विज्ञान में है। सम्पूर्ण हिंदू शास्त्रों में विज्ञान और आध्यात्म जुड़े हुए है। यजुर्वेद के चालीसवें अध्याय के उपनिषद में ऐसा वर्णन आता है कि जीवन की समस्याओ का समाधान विज्ञान से और आद्यात्मिक समस्याओ के लिए अविनाशी दर्शनशास्त्र का उपयोग करना चाहिए। उन्होंने कहाकि आज से हज़ारो साल पहले महाभारत के युद्ध मे जब अर्जुन अपने ही भाईयों के विरुद्ध लड़ने के विचार से कांपने लगते हैं, तब भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। कृष्ण ने अर्जुन को बताया कि यह संसार एक बहुत बड़ी युद्ध भूमि है,असली कुरुक्षेत्र तो तुम्हारे अंदर है। अज्ञानता या अविद्या धृतराष्ट्र है, और हर एक आत्मा अर्जुन है। और तुम्हारे अन्तरात्मा मे श्री कृष्ण का निवास है, जो इस रथ रुपी शरीर के सारथी है। इंद्रियाँ इस रथ के घोड़ें हैं। अंहकार, लोभ, द्वेष ही मनुष्य के शत्रु हैं द्यद्यउन्होंने कहाकि गुरु द्वारा जलाई गई ज्ञान की ज्वाला शिष्य की इच्छाओं को जला देती है।कृष्ण सब कुछ अर्जुन से बेहतर कर सकते हैं, पर वे अर्जुन को अपना निर्णय स्वयं लेने को कहते हैं। इसीलिए गीता जीवन निर्माण के लिए जितनी संगत है, उतनी ही जीविका निर्माण के लिए भी सुसंगत है।पूज्य सदुगुरुदेवजी के अनुसार गीता हमे जीवन के शत्रुओ से लड़ना सीखाती है,हमारा सबसे बड़ा शत्रु कोई है तो वो आलस्य, जिसकी वजह से मनुष्य अकर्मण्यता को प्राप्त होता है। गीता हमें नर से नारायण बनना सिखाती है गीता ईश्वर से एक गहरा नाता जोड़ने मे भी मदद करती है। गीता त्याग, प्रेम और कर्तव्य का संदेश देती है। गीता मे कर्म को बहुत महत्व दिया गया है। मोक्ष उसी मनुष्य को प्राप्त होता है जो अपने सारे सांसारिक कामों को करता हुआ ईश्वर की आराधना करता है। अहंकार, ईर्ष्या, लोभ आदि को त्याग कर मानवता को अपनाना ही गीता के उपदेशो का पालन करना है। श्रीरामचरितमानस की महाआरती कथा के मुख्य यजमान बाबू गंधर्व सिंह द्वारा सपरिवार की गयी। इस दौरान सरदार बीके सिंह, अवध बिहारी उपाध्याय, कुंज बिहारी उपाध्याय, राजीव बबेले, अनूप मोदी, गिरीश खरे, डा. अनूप श्रीवास्तव, अश्विनी पुरोहित, राहुल शुक्ला, रामकृपाल गुप्ता, संदीप तिवारी, लक्ष्मीनारायण साहू, संतोष साहू, लखन यादव, शत्रुघन यादव, बाबा हीरानंदगिरी, सर्वेश्वरगिरी, अमित संज्ञा व संजू खरे आदि उपस्थित रहे।

पत्रकार रामजी तिवारी मड़ावरा
चीफ एडिटर टाइम्स नाउ बुन्देलखण्ड
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