उत्तर प्रदेश

●अदम्य शौर्य और पराक्रम की यशोगाथा का नाम है महारानी लक्ष्मीबाई- ● रानी लक्ष्मीबाई के यशोगाथा को युगों -युगों तक गाया जायेगा

(ललितपुर) “चमक उठी सन् 57 में वह तलवार पुरानी थी, बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी।। खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।। महान कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान की उक्त पंक्तियों को पढ़कर भारतीय जनमानस के मस्तिष्क पटल पर एक ऐसी बेटी की अद्भुत छवि उभर आती है जिसमें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के युद्ध क्षेत्र में अपनी विद्युत रूपी तलवार से पूरी हुकूमत के हजारों अंग्रेज सैनिकों को मौत के घाट सुला दिया था।करुणा इंटरनेशनल ललितपुर द्वारा आयोजित परिचर्चा में बेटियों ने कहा कि रानी लक्ष्मीबाई के यशोगाथा को युगों -युगों तक गाया जायेगा।

01- संस्कृति पुरोहित का कहना है कि महारानी लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नवंबर 1835 ईसवी को बनारस में हुआ था।उनका बचपन का नाम मणिकर्णिका रखा गया।लेकिन प्यार से लोग इन्हें मनु एवं छवीली कहकर पुकारते थे। इनके पिता का नाम मोरपंत एवं माता का नाम भागीरथीबाई था।यही बालिका बाद में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई हुई।जिसने भारत को स्वतंत्र करवाने के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी थी।

02- महिमा का कहना है कि 1857 के संग्राम का एक प्रमुख केंद्र झांसी ही था।जहां से आजादी की चिंगारियां फूटकर प्रचंड ज्वाला के रूप में प्रचलित हुई थी।रानी लक्ष्मीबाई ने झांसी की सुरक्षा को सुदृढ़ करने के लिए एक स्वयंसेवी सेना का गठन प्रारंभ किया। इस सेना में महिलाओं की भर्ती की गई।उन्हें युद्ध का प्रशिक्षण भी दिया गया।साधारण जनता ने इस संग्राम में अपना अभूतपूर्व योगदान दिया। रानी लक्ष्मीबाई की हमशक्ल सहेली झलकारीबाई को उनकी सेना में प्रमुख स्थान दिया गया।

03-रानी यादव का कहना है कि भारतीय संस्कृति में जहां एक ओर देवताओं की आराधना की गई वहीं देवियों की वंदना भी की गई। हमारे यहां ईश्वर ने धर्म की स्थापना और दुष्टों के विनाश के लिए मनुष्य के रूप में जन्म लिया है। तो देवी परमेश्वरी ने भी नारी का रूप धारण करके दुष्टों का संहार किया है। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का नाम भी भारतीय इतिहास में स्वर्णिम पन्नों में दर्ज रहेगा।

04- आशी बजाज का कहना है कि रानी लक्ष्मीबाई प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के ऐतिहासिक पन्नों में देदीप्यमान क्रांति शिखा के रूप में प्रतिष्ठित है।यदि वे चाहती तो स्वयं और अपनी आने वाली पीढ़ियों को सभी प्रकार की भौतिक सुख सुविधाएं उपलब्ध करवा सकती थी।किंतु उन्हें गुलामी की शान ओ शौकत की अपेक्षा स्वाधीनता की रक्षा के लिए योजना अधिक सुखदाई लगी।

05-देशना जैन का कहना है कि अंग्रेजी फौज रानी की बहादुरी देखकर दंग रह गई थी।रानी अंग्रेजों के चक्रव्यू को चीरती हुई साफ बच निकली।आगे नाला था रानी का घोड़ा क्योंकि नया था इसलिए वह गिर गया।बहुत कोशिश करने पर भी वह आगे नहीं बढ़ा इतने में पीछा करते हुए कुछ अंग्रेज सिपाही रानी के पास आ पहुंचे। एक गोरे ने बंदूक से गोली दागी।गोली रानी को लगी और खून बहने लगा पर रानी किसी भी तरह अपने पार्थिव शरीर को अंग्रेजों के हाथ नहीं पड़ने देना चाहती थी।उन्होंने तलवार से गोरों को मौत के घाट उतार दिया था

6 – प्राची का कहना है कि झांसी राज्य की कुलदेवी महारानी लक्ष्मीबाई का झांसी में एक विशाल मंदिर था इस मंदिर में पूजा पाठ कीर्तन उत्सव आदि के लिए 2 गांव रानी लक्ष्मीबाई के नाम से जो अंग्रेजों ने ले लिए थे।झांसी के किले में अब अंग्रेजी सेना आ  गई थी रानी इस अपमान से बौखला गई। वह अंग्रेजों को सबक देना चाहती थी इन्हीं दिनों तात्या टोपे रानी लक्ष्मीबाई से मिलने आए उन्होंने रानी को अन्य राज्यों के समाचार सुनाएं और बताया कि किस तरह भारत के अंदर ही अंदर अंग्रेजों के विरुद्ध आग भड़क रही है इस पर रानी वह सवारी करने के लिए मर्दाना पोशाक पहनकर महलों से बाहर भी जाने लगी

पत्रकार रामजी तिवारी मडावरा
संपादक टाइम्स नाउ बुन्देलखण्ड

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